अवधपति बोले यूँ मुख से, सुनो वीर हनुमान, वर्षो बाद पड़ा है तुमसे, एक जरुरी काम, धरती पर मानव जाति यूँ, कर रही हाहाकार,
तुम्हरे काँधे पर धरता, उनके जीवन का भार, के तुम वहां बैठे बलि, करो हर एक की भली, के तुम वहां बैठे बलि,
करो हर एक की भली ॥
मेरे मन की प्यास बुझा दे, हे अंजनी के ललना, चाहूँ मैं तुमसे मिलना बालाजी, चाहूँ मैं तुमसे मिलना ॥
सालासर में ऐसा एक सरदार है, जिसके आगे झुकता ये संसार है, सच्ची सरकार है सच्चा दरबार है, सालासर में ऐसा एक सरदार हैं,
जिसके आगे झुकता ये संसार है ॥
मैंने तेरे ही भरोसे हनुमान, सागर में नैया डाल दई ॥
वीर हनुमाना वीर बजरंगा, शिवजी के रूप श्री रामके संगा, भस्म भभूत की सब लंका, श्री हरि नाम सिंदूर रंगा, विर हनुमाना विर बजरंगा, विर हनुमाना वीर बजरंगा ॥
अंजनी के लाला, एक बार मिला दे मोहे राम से ॥
शिव शंकर डमरू वाले, पीते हैं भंग के प्याले, देवों में देव निराले, है बाबा शमशानी, ये रचते खेल निराले बाबा औघड़ दानी, शिव शंकर डमरू वाले ॥