दोहा देख के सागर की लहरों को,वानर सब घबराये ।
कैसे होगा पार ये सागर, मन ही मन सकुचाये ॥
जामवंत ने बजरंगी से जाकर करी गुहार
सिवा तुम्हारे कौन ये सागर कर पायेगा पार
कौन लंका जला पाता,अगर हनुमान न होते ।
पता न सीता का लग पाता अगर हनुमान न होते ॥
लाँघक़र के समंदर को, पहुँचे लंका के वो अंदर
देख़ हनुमान की ताकत, काँप उठ्ठा था दशकँधर
कौन सूरज निकल पता, अगर हनुमान ना होते
आ के शक्ति लगी ऐसी, मूर्छा खा गए लक्ष्मण
संजीवन बूटी लाने को, गए वो दौड़ के ततक्षण
कौन पर्वत उठा पाता, अगर हनुमान न होते
राम का नाम लेकर के, जो इनके पास जाते हैं
उनके जीवन की तकलीफें, ये पल भर में मिटाते हैं
कौन संकट मिटा पाता, अगर हनुमान न होते ।