मिटदि है मूरत, जिन्दी ये वाणी है, गंगा किनारे चले जाणा, मुड़के फिर नहीं आणा..
शिव की जटा से बरसे, गंगा की धार है, गंगा की धार है, महीना ये सावन का है, छाई बहार है ॥
मानो तो मैं गंगा माँ हूँ, ना मानो तो बहता पानी, जो स्वर्ग ने दी धरती को, में हूँ प्यार की वही निशानी...
माँ गंगा मैया का गरिमामय माहात्म्य॥ बेद की औषद खाइ कछु न करै बहु संजम री सुनि मोसें ।..
मेरे राघव जी उतरेंगे पार, गंगा मैया धीरे बहो , मैया धीरे बहो ॥
भारत के लिए भगवन का, एक वरदान है गंगा, सच पूछो तो इस देश की पहचान है गंगा, हर हर गंगे, हर हर गंगे !
गंगा से गंगाजल भरके, काँधे शिव की कावड़ धरके, भोले के दर चलो लेके कावड़ चलो, भोले के दर चलो लेके कावड़ चलो ॥