सम्राट भरत, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा, वे बड़े प्रतापी और सुयोग्य शासक थे। राजा भरत शासन करते हुए भी कठोर तपस्या किया करते थे जिससे उनका शरीर दुर्बल हो गया था। एक बार एक किसान उनके पास आया और पूछने लगा, 'महाराजा आप चक्रवती सम्राट हैं करोड़ो लोगों की रक्षा और निर्वाह की व्यवस्था आपको करना पड़ती है। ऐसी दशा में आप तपस्या कैसे कर पाते हैं?'
राजा भरत ने तेल से भरा हुआ कटोरा उसके हाथ में दिया और अपने कुछ सिपाही उसके साथ करते हुए कहा कि 'इस कटोरे को हाथ में लेकर तुम हमारी सेना को देखने जाओ। मेरे सिपाही तुमको सब चीज दिखलाएंगे, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि कटोरे से तेल की एक बूंद भी बाहर गिरना नहीं चाहिए। अगर तेल गिर गया तो तुमको मृत्युदंड दिया जाएगा।'
सिपाही किसान को सेना दिखाने लेकर गए। वहां पर हजारों हाथी, अनगिनत घोड़े, तरह-तरह के अदभुत अस्त्र-शस्त्र भरे हुए थे। किसान सबको देखता तो रहा, लेकिन उसका ध्यान पूरे समय तेल से भरे कटोरे पर ही रहा कि कहीं उसमें से तेल गिर न जाए। किसान सब जगह घूमकर फिर से महाराज भरत के पास आया तो उन्होंने किसान से पूछा, 'तुम सेना देख आए हो? अच्छा बताओ तुम्हे क्या अच्छा लगा। उसमें से किस चीज को पाने की इच्छा तुमको हुई?'
किसान ने कहा कि 'महाराज मैने देखा तो सब कुछ, लेकिन मेरा ध्यान कहीं नहीं अटका। मेरा ध्यान तो इस कटोरे की तरफ ही लगा हुआ था।' यह सुनकर राजा भरत ने कहा कि 'इसी तरह राज्य कार्य करते हुए मेरा ध्यान मेरी आत्मा में लीन रहता है।'