कथा उस समय की है जब मुग़ल शासन था। एक पुजारीजी रोज ठाकुरजी के लिए फूल लेकर आते थे और उसके बाद फूलों से माला बनाते थे। और ठाकुर जी को अर्पण करते थे। एक दिन पुजारीजी फूल लेने आये तभी एक गुलाम भी फूल लेने आया तब तक फूल सारे बिक गये। बस एक ही टोकरी फूलों की बची थी।
गुलाम ने फूल वाले से कहा यह टोकरी मेरे को दे दो तब पुजारीजी भी बोले भाई यह फूलों की टोकरी मेरे को दो। तब गुलाम बोला कि पता है यह फूल जिसके लिये ले जाने है वो इस देश की बेगम है। तब पुजारीजी बोले कि मैं
यह फूल इस दुनिया के बादशाह के लिये लेकर जा रहा हूँ।
गुलाम बोला अच्छा तो जो भी ज्यादा पैसे देगा वो ले जायेगा। फूलों की टोकरी थी कुल एक पैसे की तो गुलाम ने बोली लगाई - एक रुपया।
पुजारी ने दोगुनी कर दी - 2 रुपया।
तब गुलाम ने 10 रुपया बोला
तो पुजारी जी ने 100 रुपया।
गुलाम ने 1000 रुपया।
पुजारी जी ने 2 हज़ार रुपया।
गुलाम ने 50 हज़ार रुपया।
पुजारी जी ने 1 लाख बोल दिये।
गुलाम डर गया कि एक लाख रूपये की फूलों की टोकरी ले गया तो बेगम साहेबा नौकरी से तो निकालेंगी और मार अलग पड़ेगी। गुलाम ने फूल वाले को मना करके चला गया।
तब फूलवाला बोला - पुजारीजी आप एक लाख रूपये की फूल की टोकरी लेंगे या मजाक कर रहे हो, पैसे कहाँ से दोगे तब पुजारीजी बोले कि मेरे पास जो है वह आज से आपका, वह एक लाख से ज्यादा का है।
पुजारी जी ने माला बनाई और प्रभुजी को जैसे ही अर्पण की तभी ठाकुरजी ने अपना सर झुका दिया।
तब पुजारी ने कहा - आज क्या बात है प्रभुजी आज ऐसा क्यों?
तब ठाकुरजी ने कहा - आज अलग बात है।
पुजारी जी आपने मेरी माला के लिये अपना सब कुछ लूटा दिया। प्रभुजी ने कहा कि जो मेरे लिए सब कुछ लूटा देते है में उस के लिये अपना सर भी झुका देता हूँ और उसे अपना कर भक्ति प्रेम से माला-माल तो करता ही हूँ,
मैं सदा के लिये उसका ही हो जाता हूँ। मैं तो भक्तन को दास भक्त मेरे मुकुट मणि ठाकुरजी तो सेवक के दास बन जाते है।
हमारे पास जो कुछ है उसे प्रभु की सेवा में अर्पण करके उनकी भक्ति व प्रेम प्राप्त कर मानव जीवन को धन्य करें।