नामुमकिन को कैसे मुमकिन बनायें - प्रेरक कहानी (How To Make The Impossible Possible)


एक समय की बात है एक राजा के दो बेटे थे, उम्मेदसिंह और रघुवीर सिंह। एक बार दोनों राजकुमार जंगल में शिकार करने गए। रास्ते में एक विशाल नदी थी। दोनों राजकुमारों का मन हुआ कि क्यों ना नदी में नहाया जाये। यही सोचकर दोनों राजकुमार नदी में नहाने चल दिए। लेकिन नदी उनकी अपेक्षा से कहीं ज्यादा गहरी थी।

रघुवीर सिंह तैरते तैरते थोड़ा दूर निकल गया, अभी थोड़ा तैरना शुरू ही किया था कि एक तेज लहर आई और रघुवीर सिंह को दूर तक अपने साथ ले गयी।

रघुवीर सिंह डर से अपनी सुध बुध खो बैठा गहरे पानी में उससे तैरा नहीं जा रहा था अब वो डूबने लगा था।

अपने भाई को बुरी तरह फँसा देख के उम्मेदसिंह जल्दी से नदी से बाहर निकला और एक लकड़ी का बड़ा लट्ठा लिया और अपने भाई रघुवीर सिंह की ओर उछाला।

लेकिन दुर्भागयवश रघुवीर सिंह इतना दूर था कि लकड़ी का लट्ठा उसके हाथ में नहीं आ पा रहा था।

इतने में सैनिक वहां पहुँचे और राजकुमार को देखकर सब यही बोलने लगे – अब ये नहीं बच पाएंगे , यहाँ से निकलना नामुनकिन है।

यहाँ तक कि उम्मेदसिंह को भी ये अहसास हो चुका था कि अब रघुवीर सिंह नहीं बच सकता, तेज बहाव में बचना नामुनकिन है, यही सोचकर सबने हथियार डाल दिए और कोई बचाव को आगे नहीं आ रहा था। काफी समय बीत चुका था, रघुवीर सिंह अब दिखाई भी नही दे रहा था।

अभी सभी लोग किनारे पर बैठ कर रघुवीर सिंह का शोक मना रहे थे कि दूर से एक सन्यासी आते हुए नजर आये उनके साथ एक नौजवान भी था। थोड़ा पास आये तो पता चला वो नौजवान रघुवीर सिंह ही था।

अब तो सारे लोग खुश हो गए लेकिन हैरानी से वो सब लोग रघुवीर सिंह से पूछने लगे कि तुम तेज बहाव से बचे कैसे ?

सन्यासी ने कहा कि आपके इस सवाल का जवाब मैं देता हूँ - ये बालक तेज बहाव से इसलिए बाहर निकल आया क्यूंकि इसे वहां कोई ये कहने वाला नहीं था कि यहाँ से निकलना नामुनकिन है इसे कोई हताश करने वाला नहीं था, इसे कोई हतोत्साहित करने वाला नहीं था। इसके सामने केवल एक लकड़ी का लट्ठा था और मन में बचने की एक उम्मीद और इसने प्रयत्न जारी रखा और बस इसीलिए ये बच निकला।

नामुमकिन को कैसे मुमकिन बनायें
जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही होता है, जब दूसरे लोग किसी काम को असम्भव कहने लगते हैं तो हम भी अपने हथियार डाल देते हैं। हम अपनी क्षमता का आंकलन दूसरों के कहने से करते हैं। आपके अंदर अपार क्षमताएं हैं, किसी के कहने से खुद को कमजोर मत बनाइये। सोचिये विक्रम से अगर बार बार कोई बोलता रहता कि यहाँ से निकलना नामुमकिन है, तुम नहीं निकल सकते, ये असम्भव है तो क्या वो कभी बाहर निकल पाता ? उसने स्वयं पे विश्वास रखा, स्वयं पे उम्मीद थी बस इसी उम्मीद और लगातार प्रयास ने उसे बचाया।
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