तुलसीदास जी को भगवान् श्री कृष्ण का राम रूप में दर्शन देना:
भक्तमाल सुमेरु बनाने के पश्चात गोस्वामी जी नाभादास जी को साथ लेकर श्री मदनमोहन जी के दर्शन करने गए। गोस्वामी जी ने भगवान श्री मदन मोहन जी से प्रार्थना की: प्रभो ! आपकी यह छबि अवर्णनीय है, परंतु सच्ची बात तो यह है की भगवान श्रीराम मेरे इष्टदेव है।
का बरनउँ छबि आज की,
भले बने हो नाथ ।
तुलसी मस्तक तब नवै,
धनुष बान लेओ हाथ ॥उस समय तुलसीदास जी की दृष्टी प्रेम में पगी हुई थी। भक्त की भावना, प्रार्थना को स्वीकार कर
श्रीकृष्ण ने हाथ में धनुष-बाण ले लिया और श्री राम रूप में दर्शन दिए।
अपने मन के अनुरूप अपने इष्टदेव की शोभा, सुंदरता जब आपने देखी तो इन्हें अत्यंत ही प्रिय लगी।
कुछ श्री कृष्ण के अनन्य उपासको ने कहा: भगवान् श्री कृष्ण सोलह कलाओं से पूर्ण प्रशंसनीय है और श्री रामचंद्र जी अंशावतार है।
यह सुनकर गोस्वामी जी ने उत्तर दिया कि अब तक तो मै उन्हें श्री दशरथ जी का पुत्र, परम सुंदर उपमा रहित जानकार उनसे प्रेम करता था,
परंतु आज आपके द्वारा मालूम हुआ कि उनमें ईश्वरता भी है। अब उनमें मेरी प्रीति करोड़ों गुनी अधिक हो गयी है। वहाँ से आगे से चलकर अनेक प्राणियो का उद्धार करते हुए, लोगों को अपने धर्म मे स्थिर और भगवान की ओर बढाते हुए गोस्वामी जी अयोध्या आये।