एक बार गौतम बुद्ध एक गांव में धर्म सभा को संबोधित कर रहे थे। लोग अपनी परेशानियों को लेकर उनके पास जाते और उनका हल लेकर खुशी-खुशी वहां से लौटते। उसी गांव में सड़क के किनारे एक गरीब व्यक्ति बैठा रहता और धर्म सभा में आने-जाने वाले लोगों को ध्यान से देखता। उसे बड़ा आश्चर्य होता कि लोग अंदर तो बड़ा दुखी चेहरा लेकर जाते हैं, लेकिन जब वापस आते हैं तो बड़े प्रसन्न दिखाई देते हैं। उस गरीब को लगा कि क्यों न वह भी अपनी समस्या को बुद्ध के सामने रखे? मन में यह विचार लिए वह भी महात्मा बुद्ध के पास पहुंचा।
लोग पंक्तिबद्ध खड़े होकर उन्हें अपनी समस्याएं बता रहे थे और वह मुस्कुराते हुए सबकी समस्याएं हल कर रहे थे।
जब उसकी बारी आई तो उसने सबसे पहले महात्मा को प्रणाम किया और कहा: भगवन, इस गांव में लगभग सभी लोग खुश और समृद्ध हैं। फिर मैं ही क्यों गरीब हूं?
इस पर बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले: तुम गरीब और निर्धन इसलिए हो, क्योंकि तुमने आज तक किसी को कुछ दिया ही नहीं।
आर्श्चयचकित गरीब बोला: भगवन, मेरे पास भला दूसरों को देने के लिए क्या होगा? मेरा तो स्वयं का गुजारा बहुत मुश्किल से हो पाता है। लोगों से भीख मांग कर अपना पेट भरता हूं।
भगवान बुद्ध कुछ देर शांत रहे, फिर बोले: तुम बड़े अज्ञानी हो। औरों के साथ बांटने के लिए ईश्वर ने तुम्हें बहुत कुछ दिया है। मुस्कुराहट दी है, जिससे तुम लोगों में आशा का संचार कर सकते हो। मुंह से दो मीठे शब्द बोल सकते हो। दोनों हाथ से लोगों की मदद कर सकते हो। ईश्वर ने जिसको ये तीन चीजें दी हैं वह कभी गरीब और निर्धन हो ही नहीं सकता। निर्धनता का विचार आदमी के मन में होता है, यह तो एक भ्रम है इसे निकाल दो।
यह सुन ज्ञान से उस आदमी का चेहरा चमक उठा।