विचारों को बार-बार दोहराने यानी विचारों के सम्प्रेषण जिसे इंग्लिश में अफ्फर्मटिव कहा जाता हैं, इसके बारे में महाभारत के कृष्ण व अर्जुन के उदाहरण के साथ आपको बताएंगे, कि कैसे एक विचार को बार बार दोहराते रहने से वह विचार हमारे जिंदगी पर असर करता हैं। इसी बात से अनजान कई लोग रोजाना नकारात्मक विचारों को बार-बार सोच कर अपने जीवन को नर्क बना रहे हैं। तो सुनिए कैसे बार-बार बुरे विचारों को सोचने से हमारे जीवन में भी बुरा होने लगता हैं।
महाभारत में अर्जुन के सारथि भवान श्री कृष्ण थे, जो उसे युद्ध की पूरी अवधि में यही सन्देश देते रहे कि कौरवों की पराजय अवश्य होगी।
अर्जुन! तुम महावीर हो! तुम कारण को मारने में अवश्य सफल रहोगे। तुम्हारे साथ सत्य की शक्ति हैं, परमात्मा की शक्ति हैं।
इसकी विपरीत कर्ण, अर्जुन से कहीं अधिक वीर और साहसी होने पर भी दुविधा में पड़ा रहा। उसकी माँ कुंती ने युद्ध से पूर्व यह वचन ले लिया कि वह युद्धभूमि में अर्जुन के सिवाय और किसी भाई को नहीं मारेगा।
जीवन भर सारथी पुत्र कहे जाने वाले महापराक्रमी कर्ण के मन में कितना द्वन्द और दुःख रहा होगा कि उसको जन्म देने वाली माता कुंती ने उसे अपना पुत्र स्वीकारा भी तो कब? जब वह अपने जीवन के सबसे भीषण और निर्णायक युद्ध महाभारत में कौरवों का सेनापति घोषित कर दिया गया। एक ओर अपने भाई और दूसरी ओर जीवनभर कठिनाइयों में साथ देनेवाले मित्र का प्रेम।
और उसने कर्तव्य पालन के नाते दुर्योधन का साथ देने का ही निर्णय किया। सारथी पुत्र विशेषण से युक्त कर्ण के सेनापति बन जाने के बाद भी कोई प्रतिष्ठित राजा उसका सारथी नहीं बनना चाहता था।
दुर्योधन ने अपने दबाव से मद्रदेश के राजा शल्य को उसका सारथी बनने के लिए विवश किया और शल्य जो नकुल तथा सहदेव पांडवों के सगे मामा थे, कभी नहीं चाहते थे कि कर्ण की अर्जुन पर विजय प्राप्त हो। इसके लिए उन्होने एक मनोवैज्ञानिक विधि अपनाई। कर्ण का रथ चलाते हुए भी वह उससे बार-बार यह कहते रहे कि तुम अर्जुन से हार जाओगे। इस बात को उन्होने अनेक प्रकार से इतनी बार कहा कि कर्ण भी कसमसा उठा।
इस तरह एक ओर अर्जुन था, जिसके सारथी योगिराज कृष्ण उसमें उत्साह आत्मविश्वाश और विजय के विचार तथा भावनाये भर रहे थे, तो दूसरी और दुविधाग्रस्त कर्ण था जिसके
मन में शल्य हीनता, हताशा तथा हार के विचार भर रहा था। अंत में कर्ण अर्जुन के बाणों से धाराशायी हो गया और उसकी हार हो गयी।
इस कथा में एक मनोवैज्ञानिक सत्य छिपा हुआ हैं। वह सत्य है विचारों की शक्ति का। हम जिस विचार से सम्मोहित हो जाते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। हमारे मनोमस्तिष्क में दूसरों के द्वारा कही हुई बातों, दृश्यों स्मृतियों आदि के द्वारा भांति-भांति के विचार उठते रहते हैं।
इसीलिए मनोचिकित्सक तथा आध्यात्मिक सदैव स्वास्थ्य, सुख तथा सफलता के विचारों को रखने की सलाह देते हैं। इससे यह सिद्ध है कि हमारे मंगलमय विचार का शरीर तथा मन पर शुभ प्रभाव पड़ता हैं और अशुभ विचार का प्रभाव अशुभ पड़ता हैं।
इस तरह कर्ण और अर्जुन दोनों में विचारों का सम्प्रेषण किया गया, और जिसको जिस विचार का सम्प्रेषण दिया गया उसके साथ वैसे ही हुआ। हम रोजाना अपनी जिंदगी के बारे में कैसे महसूस करते हैं, यही हमारे आने वाले कल का निर्माण करता हैं। इसलिए हमेशा सकारात्मक रहे ताकि आपके जीवन में आने वाला पल आपको ढेर सारी प्रगति कराये।