काशी में 350 साल पुरानी परंपरा: सावन में बाबा विश्वनाथ को झुलाया जाता है झूला (350 years old tradition in Kashi Baba Vishwanath is made to swing in Sawan)

परंपरा का निर्वहन करते हुए श्रावण पूर्णिमा पर शिव की नगरी खिल उठी। काशीवासियों ने काशीपुराधिपति को चांदी के झूले में झुलाकर परंपरा का निर्वहन किया। पूर्व महंत ने 350 वर्षों से चले आ रहे झूलनोत्सव की नई जिम्मेदारी नई पीढ़ी को सौंपी। जब राज राजेश्वर अपने परिवार के साथ सड़कों पर भक्तों के बीच निकले तो हर-हर महादेव का जयघोष गूंज उठा।
बुधवार को टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर मंगला आरती के साथ झूलन उत्सव का अनुष्ठान शुरू हुआ। दोपहर में बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का शृंगार संजीव रत्न मिश्र ने किया। श्रावण पूर्णिमा पर दोपहर 1:30 बजे से शाम 6 बजे तक आम भक्तों ने बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का दर्शन किया।

जब बाबा विश्वनाथ चांदी की पालकी पर सवार होकर काशी की सड़कों पर निकले तो भक्त भी भगवान के दर्शन के लिए उमड़ पड़े। शृंगार भोग आरती के दौरान डमरू और शहनाई वादन के बीच बाबा की प्रतिमा का विसर्जन धाम में किया गया। मंत्रोच्चार के साथ बाबा की प्रतिमा को गर्भगृह में स्थापित किया गया।
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On Shravan Purnima, the ritual of Baba Vishwanath's Jhulnotsav, which has been going on for 350 years, took place in the city of Shiva.
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