॥ ॐ श्रीसाम्बशिवाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥
आद्यन्तमङ्गलमजातसमानभाव-
मार्यं तमीशमजरामरमात्मदेवम् ।
पञ्चाननं प्रबलपञ्चविनोदशीलं
सम्भावये मनसि शङ्करमम्बिकेशम् ॥
- [ श्रीशिवमहापुराण / प्रथम-खण्ड - पूर्वार्ध /विद्येश्वरसंहिता / प्रथमोऽध्यायः / मुनिप्रश्नोत्तरवर्णनम् ]हिन्दी अनुवाद:
जो आदि और अन्तमें [तथा मध्यमें भी] नित्य मङ्गलमय हैं, जिनकी समानता अथवा तुलना कहीं भी नहीं है, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले परमात्मा हैं, जिनके पाँच मुख हैं और जो खेल-ही-खेल में अनायास जगत् की रचना, पालन, संहार, अनुग्रह एवं तिरोभाव रूप पाँच प्रबल कर्म करते रहते हैं, उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर ईश्वर अम्बिकापति भगवान् शंकरका मैं मन-ही-मन चिन्तन करता हूँ।
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