कूष्मांडा देवी कवच (Kushmanda Devi Kavach)


हंसरै में शिर पातु
कूष्माण्डे भवनाशिनीम् ।
हसलकरीं नेत्रेच,
हसरौश्च ललाटकम् ॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे,
वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी
इन्द्राणी दक्षिणे मम ।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव
कूं बीजं सर्वदावतु ॥
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नर्मदा अष्टकम

सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम, द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम, कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे