दुर्गा सप्तशती देवीमयी (Durga Saptashati Devimayi)


॥ देवीमयी ॥
तव च का किल न स्तुतिरम्बिके!सकलशब्दमयी किल ते तनुः।
निखिलमूर्तिषु मे भवदन्वयोमनसिजासु बहिःप्रसरासु च॥
इति विचिन्त्य शिवे! शमिताशिवे!जगति जातमयत्नवशादिदम्।
स्तुतिजपार्चनचिन्तनवर्जिता नखलु काचन कालकलास्ति मे॥
नवरात्रि 2024 की तारीखें
Navratri 2024 Dates
दिन तिथि नवरात्रि में देवी के नाम रँग
3 अक्टूबर प्रतिपदा घटस्थापना, माता शैलपुत्री पूजा, अग्रसेन जयंती पीला
4 अक्टूबर द्वितीया माता ब्रह्मचारिणी पूजा हरा
5 अक्टूबर तृतीया माता चंद्रघंटा पूजा, सिन्दूर तृतीया स्लेटी
6 अक्टूबर तृतीया - नारंगी
7 अक्टूबर चतुर्थी माता कुष्मांडा पूजा सफ़ेद
8 अक्टूबर पंचमी माता स्कंद माता पूजा, ललिता पञ्चमी | दुर्गा पूजा (बिल्व निमन्त्रण) लाल
9 अक्टूबर षष्ठी माता कात्यायनी पूजा | दुर्गा पूजा (कल्पारम्भ, अकाल बोधन) गहरा नीला
10 अक्टूबर सप्तमी माता कालरात्रि पूजा, सरस्वती पूजा | दुर्गा पूजा (नवपत्रिका पूजा, कलाबोऊ पूजा) गुलाबी
11 अक्टूबर अष्टमी महा गौरी पूजा, माता सिद्धिदात्री पूजा, नवमी हवन | दुर्गा पूजा (दुर्गा अष्टमी, कुमारी पूजा, सन्धि पूजा, महा नवमी) बैंगनी
12 अक्टूबर नवमी विजयदशमी, नवरात्रि व्रत समाप्त | दुर्गा पूजा (बंगाल महा नवमी, दुर्गा बलिदान, नवमी हवन, दुर्गा विसर्जन) -
13 अक्टूबर दशमी दुर्गा पूजा (बंगाल विजयादशमी, बंगाल दुर्गा विसर्जन, सिन्दूर उत्सव) -
Durga Saptashati Devimayi - Read in English
Tava Cha Ka Kila Na Stutirambike!Sakalashabdamayi Kila Te Tanuh। Nikhilamurtishu Me BhavadanvayoManasijasu Bahihprasarasu Cha॥
दुर्गा सप्तशती देवीमयी
हे जगदम्बिके! संसार में कौन-सा वाङ्मय ऐसा है, जो तुम्हारी स्तुति नहीं है, क्योंकि तुम्हारा शरीर तो सकल शब्दमय है। हे देवि! अब मेरे मन में संकल्प विकल्पात्मक रूप से उदित होने वाली एवं संसार में दृश्य रूप से सामने आने वाली सम्पूर्ण आकृतियों में आपके स्वरूप का दर्शन होने लगा है।

हे समस्त अमंगल ध्वंस कारिणि कल्याण स्वरूपे शिवे! इस बात को सोचकर अब बिना किसी प्रयत्न के ही सम्पूर्ण चराचर जगत्‌ में मेरी यह स्थिति हो गयी है कि मेरे समय का क्षुद्रतम अंश भी तुम्हारी स्तुति, जप, पूजा अथवा ध्यान से नहीं है। अर्थात् मेरे सम्पूर्ण जागतिक आचार-व्यवहार तुम्हारे ही भिन्न रूपों के प्रति यथोचित रूप से व्यवहृत होने के कारण तुम्हारी पूजा के रूप में परिणत हो गये हैं।
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अन्नपूर्णा स्तोत्रम्

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी, निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।

श्रीमहालक्ष्मीस्तोत्रम् विष्णुपुराणान्तर्गतम्

सिंहासनगतः शक्रस्सम्प्राप्य त्रिदिवं पुनः। देवराज्ये स्थितो देवीं तुष्टावाब्जकरां ततः॥