शंकराचार्य मंदिर, श्रीनगर में शंकराचार्य पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है और कश्मीर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।
ज्येष्ठेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाने वाले
इस मंदिर का नाम महान दार्शनिक शंकराचार्य के नाम पर रखा गया है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे लगभग दस शताब्दी पहले श्रीनगर आए थे। जिस शिव लिंग की वे पूजा करते थे वह मंदिर में स्थित है।
शंकराचार्य मंदिर का इतिहास और वास्तुकला:
शंकराचार्य मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय है।
राजा गोपादत्य ने 371 ईसा पूर्व के दौरान मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर 200 ईसा पूर्व का है, हालाँकि वर्तमान संरचना संभवतः 9वीं शताब्दी ईस्वी की है।
ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसी स्थान पर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था और इस ज्ञान के बाद ही उन्होंने अद्वैत, या गैर-द्वैतवाद के दर्शन के चार हिंदू विद्यालयों का गठन किया। शंकराचार्य मंदिर एक ठोस चट्टान पर स्थित है और एक ऊंचे अष्टकोणीय मंच पर बना है, जहां लगभग 243 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचा जा सकता है। मंदिर के शीर्ष से नीचे की घाटी का व्यापक दृश्य दिखाई देता है।
मंदिर में मूल आराध्य भगवन शिव, लिंगम के रूप में विद्यमान हैं। मंदिर परिसर में देवी-देवताओं की तीन सौ से अधिक बहुमूल्य मूर्तियों हैं। मंदिर के आसपास की अन्य संरचनाओं को कश्मीर पर शासन करने वाले सुल्तान सिकंदर द्वारा नष्ट कर दिया गया था। इसके उपरांत मंदिर की मरम्मत सिख शासन के दौरान की गई थी। बाद में इसकी मरम्मत कश्मीर के दूसरे डोगरा शासक
महाराजा रणबीर सिंह ने कराई थी।
शंकराचार्य मंदिर का दर्शन समय
शंकराचार्य मंदिर पूरे सप्ताह खुला रहता है और भक्तों को
सुबह 7:30 बजे से शाम 5:00 बजे तक दर्शन मिलते हैं।
शंकराचार्य मंदिर के प्रमुख त्यौहार
महा शिवरात्रि इस मंदिर में मनाया जाने वाला मुख्य त्योहार है जो बड़ी संख्या में पर्यटकों के साथ-साथ कश्मीरी हिंदुओं को भी आकर्षित करता है। भक्त लिंगम पर दूध, फल और फूल चढ़ाते हैं और भगवान की स्तुति में गीत गाते हैं।
इस मंदिर में ज्यादातर तीर्थयात्री और पर्यटक अमरनाथ यात्रा के लिए आते हैं।
प्रचलित नाम: शंकराचार्य मंदिर, ज्येष्ठेश्वर मंदिर