मुक्ति धाम, मुकाम राजस्थान के बीकानेर के पास स्थित है जहां बिश्नोईसमाज के प्रवर्त्तक गुरु जम्भेश्वर का लोकप्रिय मंदिर है जिसे मुक्ति धाम मुकाम के नाम से भी जाना जाता है। आज के समय में गुरु जी की समाधी पर बने मंदिर का जीर्णोद्धार करके एक भव्य मंदिर बना दिया है। गुरु जी की समाधी पर बने मंदिर को निज मंदिर कहा जाता है। मुक्तिधाम मुकाम में वर्ष में फाल्गुन और आसोज की अमवस्या को दो मेले लगते है। जिसमे आने वाले श्रद्धालुओ की संख्या बहुत ज्यादा होती है। यह बिश्नोई समाज का एक बड़ा एवं मुख्य मंदिर है। वे 29 नियमों का भी पालन करते हैं। जानवरों और पर्यावरण से हमेशा प्यार रहता है।
मुक्ति धाम मुकाम का इतिहास
मुकाम धाम बिश्नोई समाज के लिए एक महतवपूर्ण स्थल है, क्योंकि यहाँ पर गुरु जम्बेश्वर भगवान की पवित्र समाधी बनी हुई है। बताया जाता है की यहां गुरुजी ने 1540-1593 वि.संवत तक निवास किया तथा 1542 वि.संवत में बिश्नोई पन्थ की स्थापना की। इस थल के सबसे शिखर की चोटी पर गुरुजी विराजमान थे और हवन किया करते थे।
मुकाम के बारे में कहा जाता है कि गुरु जाम्भोजी भगवान ने अपने स्वर्गवास से पूर्व समाधी के लिए खेजड़ी के वृक्ष की निशानी बताई, और कहा कि “खेजड़ी के पास24 हाथ खोदने पर भगवान शिव का त्रिशूल और धुना मिलेगा, वहां पर आप मेरी समाधी बनाये”
वह त्रिशूल और धुना आज के मुकाम मंदिर में मिला जहा भगवान जाम्भोजी की समाधी बानी हुई है। और वह खेजड़ी भी अभी तक वहां है। जिसकी बिश्नोईसमाज पूजा करते है। मुकाम के पास ही कुछ दुरी पर समराथल धोरा है जहा पर भगवन जाम्भोजी ने बहुत समय तक तपस्या की थी और जीव कल्याण का था। जो भी श्रद्धालु मुकाम जाता है वह समराथल धोरे पर जरूर जाता है और वहां पर धोक जरूर लगता है।
बिश्नोई समाज के पूर्वजो बताते हैं कि जब जाम्भोजी भगवन ने अपनी देह का त्याग किया, उसके बाद जब तक वह त्रिशूल नहीं मिला जब तक जाम्भोजी की पार्थिव देह को लालासर साथरी कपडे में बांधकर खेजड़ी वृक्ष के द्वारा जमीन से ऊपर रखा गया। और तब तक सभी भक्तजन उनके पास बैठे रहते थे। और इसके चारों ओर जंगल ही जंगल (ओरण) है। गुरूजी नेसबद नं. 72 में \"हरि कंकेड़ी मण्डप मेड़ी, तहांहमारा वासा॔\" कहकर इसी स्थान की ओर इंगित किया है।
मुक्ति धाम मुकाम दर्शन का समय
मुक्तिधाम पूरे सप्ताह के लिए खुलता है और दर्शन का समय सुबह 4 बजे से रात 8 बजे तक है।
मुक्ति धाम मुकाम के प्रमुख त्यौहार
मुक्ति धाम मुकाम मेें प्रति वर्ष 28 फरवरी से 3 मार्च तक फाल्गुन अमावस्या का मेला प्रमुख त्यौहार है , परन्तु आसोज मेला संत वील्होजी ने विक्रम सम्वत् 1648 में प्रारम्भ किया था। हर अमावस्या को बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करते हैं। मुकाम में पहुंचने वाले सभी श्रद्धालु समाधि के दर्शन करते हैं और धोक लगाते हैं। यहां पर पर्यावरण शुद्धि के लिए हवन होता है, जिसमें घी व खोपरे की आहुतियां दी जाती है।
यहाँ पर आने वाले सभी श्रद्धालु पक्षियों को दाना डालते है जिसे वह हर दिन सुबह शाम चुगते है।
मुक्तिधाम मुकाम तक कैसे पहुंचें
मुक्ति धाम मुकाम से तीन किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है, तथा बीकानेर से लगभग 83 कि.मी. की दूरी पर है। यह स्थान सड़क मार्गों और निकटतम रेलवे स्टेशन बीकानेर से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, इसलिए कोई भी आसानी से इस स्थान तक पहुंच सकता है।
मुक्ति धाम का अनुभव:
❀ मुक्ति धाम एक बहुत ही शांतिपूर्ण जगह है जो बहुत सारी सकारात्मक ऊर्जा देती है।
❀ यह सफेद संगमरमर से निर्मित सफेद रंग का मंदिर है, ताज महल जैसा दिखता है।
❀ मुक्तिधाम रेत के टीलों और खेजड़ी के पेड़ों से घिरा हुआ है। यहां आप हिरण और अन्य जंगली जानवरों को बेखौफ घूमते हुए देख सकते हैं।
❀ यहां हर समय भोजन (लंगर) की सुविधा उपलब्ध है।
प्रचलित नाम: मुक्ति धाम मंदिर, बिश्नोई समाज मंदिर, गुरु जंबेश्वर समाधि