भगवान
श्री देवनारायण जी की जन्मस्थली
मालासेरी डूंगरी राजस्थान के
भीलवाड़ा जिले की आसींद तहसील में स्थित है। यह भीलवाड़ा जिले से 60 किमी और आसींद तहसील से 5 किमी पूर्व में आसींद शाहपुरा रोड पर स्थित है। प्रकृति की गोद में हरियाली से बिखरा मालास्सेरी डूंगरी बेहद खूबसूरत रमणीय स्थल है। इस डूंगरी की ऊंचाई करीब 350 फीट है।
मालासेरी डूंगरी के पीछे की पौराणिक कथा
मालासेरी डूंगरी में माता साडू की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शंका सावंत ने 968 माघ मास के शनिवार को शाम को शिला फाड़कर एक कमल के फूल की नाभि से भगवान विष्णु देवनारायण के रूप में अवतार लिया। उसी क्षण मालासेरी की डूंगरी कुछ पलों के लिए पूरी तरह सोने की हो गई थी। स्वर्ग से पांच कामधेनु गायें, देव जी के अवतार से 6 महीने पहले भादवि छठ पर लीलाधर के अवतार देव जी का घोड़ा इसी डूंगरी पर दूसरी सुरंग से निकला था और इसी के पास दूसरी सुरंग से नाग वासक राजा का अवतरण हुआ था।
जिस स्थान पर कमल का फूल उगा था, वहां एक शाश्वत सुरंग है, वर्तमान में उस सुरंग पर देवजी की मूर्ति विराजमान है। मंदिर की छत प्राकृतिक चट्टान से बनी है। मंदिर में एक अखंड ज्योत है। जहां पवित्र गुफा आज भी मानव संसाधन से इतनी दूर है कि भीतर कोई विद्युत उपकरण काम नहीं करता।
मलसेरी डूंगरी के मंदिर के ऊपर एक नीम का पेड़ है जो सैकड़ों साल पुराना है। नीम के इस पेड़ की खासियत यह है कि जब दो पत्तों को एक साथ तोड़ा जाता है तो एक पत्ते का स्वाद कड़वा होता है जबकि एक पत्ते का नहीं। यहां हर दिन नाग वासक राजा के लिए देसी गाय का दूध रखा जाता है, जो वासक राजा रोज दूध पीने आते हैं और सौभाग्यशाली भक्तों को आज भी दर्शन देते हैं, इसमें भादवि छठ और माही सातम का विशेष महत्व है।
यहां सैकड़ों वर्षों से एक ही परिवार के गुर्जर समाज के पोसवाल गोत्र परिवार के भोपाजी पूजा करते आ रहे हैं। जिसमें हेमराज पोसवाल सक्रिय पुजारी हैं।
मालासेरी डूंगरी का महत्व
यहां लाखों लोग भगवान नारायण के दरबार में आते हैं, जिनकी हर मनोकामना पूरी होती है, उनके कई जीते-जागते उदाहरण हैं। श्रावण और भाद्रपद के महीनों में यहां लाखों श्रद्धालु कई राज्यों और जिलों से ध्वजा लेकर पदयात्रा के लिए आते हैं। यहां बारह महीनों में देव भक्तों के सहयोग से 24 घंटे अखंड मुक्त भंडारा चलता है। यह गुर्जर समाज का सबसे बड़ा तीर्थ और सर्व समाज का आस्था केंद्र है जहां राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं।
प्रचलित नाम: देव नारायण जन्म स्थान