श्री बसंत कुमार बिरला द्वारा निर्मित बीसवीं सदी का नवीनतम एवं एकमात्र सूर्य मंदिर,
ग्वालियर मे स्थित है
. बिरला परिवार की अवधारणा होने के कारण तथा भारत में प्रचलित अन्य बिरला मंदिरों के कारण ग्वालियर के इस मंदिर को
बिरला मंदिर अथवा
बिरला सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। अन्य सभी बिरला मंदिरों की ही तरह यहाँ अत्यधिक हरियाली और बड़े-बड़े बगीचे देखने को मिल जाएँगे। यहाँ फ़ुब्बारे जलाशय के साथ हमारे राष्ट्रीय पक्षी मोर को भी देखा जा सकता है।
मंदिर का निर्माण इतिहास:
इस मंदिर का निर्माण श्री घनश्याम दास जी बिरला की प्रेरणा से बसंत कुमार जी बिरला ने करवाया। मंदिर का शिलान्यास 1984 तथा प्राण प्रतिष्ठा
23 जनवरी को की गई। यह मंदिर
20500 वर्ग फीट क्षेत्रफल में फैला हुआ है। तथा मंदिर की
उँचाई 76 फीट 1 इंच है।
कोणार्क सूर्य मंदिर की अनुकृति के रूप में विवस्वान मंदिर का निर्माण भारतीय मंदिर वास्तु इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। यह मंदिर आधुनिक युग का एकमात्र सूर्य मंदिर ही नहीं अपितु मंदिर वास्तुशिल्प का गौरव भी है।
सूर्य मंदिर का स्वरूप:
यह मंदिर भगवान सूर्य के रथ के आकार का है इसे एक बड़े चबूतरे के ऊपर मध्य में
24 चक्रों तथा
सात घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ के रूप में विवस्वान मंदिर के गर्भगृह और मुख्य हॉल अर्थात जगमोहन को बनाया गया है। वर्ष के 24 पखवाड़े दिन और रात के आठ-आठ यम, सप्ताह इन के प्रतीक हैं।
मंदिर का गर्भगृह:
◉ मुख्य मंदिर गर्भगृह में सात घोड़ों के रथ के रूप में संगमरमर का चबूतरा है। चबूतरे के सामने सात घोड़े(अश्व) हैं। जिसकी रास सारथी
अरुण के हाथ में है। चबूतरे पर उच्च आसन पर अत्यंत सुंदर भगवान
विवस्वान (सूर्य देव) की मूर्ति विराजमान है।
◉ पद्मासन में बैठे सूर्य भगवान
किरीट,
कुंडल,
एकावली,
हार,
यज्ञोपवीत,
कंकण नूपुर तथा
मेखला और
धोती धारण किए हुए हैं। चतुर्भुज देवता की कंधों तक उठी दो भुजाओं में
कमल पुष्प, सामने वाली दाहिनी भुजा में
त्रिशूल और बाई भुजा में
माला है।
◉ यह सूर्य प्रतिमा पौराणिक हिंदू धर्म की त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा सूर्य का समन्वित रूप प्रस्तुत करती है। कमलपुष्प सूर्य और विष्णु के, त्रिशूल शिव के, माला ब्रह्मा के प्रतीक हैं।
◉ गर्भगृह के अंदर सूर्य की रोशनी पहुंचाने के लिए शिखर के चारों ओर सुरंग बनाई गई हैं जिनके द्वारा सूर्य की रोशनी मूर्ति पर पढ़ती है जिससे मूर्ति और चमक उड़ती है।
◉ मंदिर का वास्तु इस प्रकार से निर्मित किया गया है कि दिन के मध्य में सूर्य किरणें गर्भगृह में स्थित सूर्य भगवान की मूर्ति के स्वर्ण मुकुट को प्रकाशित करता है।
सूर्य मंदिर का बाहरी स्वरूप:
मंदिर के उत्तर पश्चिम एवं दक्षिण दिशा में छोटे-छोटे मंदिर चारों ओर से खुले मण्डपों की भांति बने हुए हैं। जिसके क्रमशः
ब्रह्मा विष्णु और महेश के समन्वित रूपों की सूर्य मूर्तियां हैं।
सूर्य मंदिर में अन्य मूर्तियाँ एवं मण्डपम्:
✽ मंदिर के पूर्व दिशा में दाहिने एवं बाएँ ओर दो भव्य छतरियां में श्री घनश्याम दास बिरला तथा उनकी पत्नी
श्रीमती महादेवी बिरला की आदम कद कांस्य मूर्तियां भगवान को प्रणाम करते हुए मंदिर की ओर अभिमुख हैं।
✽ मंदिर के मुख्य हाल मैं तीन द्वारा हैं, प्रत्येक द्वार पर चार-चार स्तंभ है इन स्तंभो पर नवग्रहों की 9-9 मूर्तियां प्रत्येक द्वार पर क्रमशः
सूर्य,
चंद्र,
मंगल,
गुरु,
शुक्र,
शनि व
राहु एवं
केतु की मूर्तियां एवं प्रत्येक द्वार पर
चतुर्भुजी गणेश जी विराजमान हैं।
✽ मंदिर में कुल
373 मूर्तियां है। मंदिर की दीवारों पर द्वादशा सूर्य, दशावतार, ब्रह्मा, विष्णु तथा नारद सप्तमातृका, नवदुर्गा चारों दिशाओं के ऊपर चार नृत्य मुद्रा में तथा वाद्य बजाती मुद्रा में नारी मूर्ति है।
बीसवीं सदी का एकमात्र सूर्य मंदिर लोकसाक्षी प्रत्यक्ष ज्ञान और प्रकाश का द्योतक काल और दिशा की अवधारण शक्ति और जीवन दाता हैं। सूर्य की उपासना से सभी अरिष्ट ग्रहों के दोषों की शांति होती है।
मंदिर में निशुल्क जूता घर, पेय जल एवं शौचालयों की उचित व्यवस्था है। मंदिर के गर्भग्रह एवं आंतरिक प्रांगण को छोड़कर अन्य सभी जगह वीडियोग्राफी एवं फोटोग्राफी करने की अनुमति है। मंदिर का प्रांगण छोटे बच्चों को अति प्रिय लगता है। मंदिर में दर्शन के अतिरिक्त बहुत लोग दर्शनीय स्थल एवं पिकनिक के रूप में भी आते हैं। मंदिर के बाहर पार्किंग के लिए भी सुलभ स्थान है।
प्रचलित नाम: विवस्वान मंदिर, ग्वालियर बिरला मंदिर, ग्वालियर विवस्वान सूर्य मंदिर