श्री राधा गोविंद जी मंदिर के मुख्य आराध्य, श्री गोविंदजी की मूर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी जिसको जयपुर के तब के राजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहाँ पुनः स्थापित किया था।
ठिकाना मंदिर श्री गोविंद देवजी महाराज के अधीन 20 से भी अधिक मंदिर आते हैं। श्री राधा गोविंद जी मंदिर गौड़िया संप्रदाय का मंदिर है, इस संप्रदाय का उदगम श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा हुआ था।
भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र एवं मथुरा के राजा वज्रनाभ ने अपनी माता से सुने गए भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप के आधार पर तीन विग्रहों का निर्माण करवाया इनमें से पहला विग्रह है गोविंद देव जी का है दूसरा विग्रह जयपुर के ही श्री गोपीनाथ जी का है तथा तीसरा विग्रह है श्री मदन मोहन जी करौली का है वजरनाभ के माता के अनुसार श्री गोविंद देव का मुख, श्री गोपीनाथ का वक्ष, श्री मदन मोहन के चरण श्री कृष्ण के स्वरूप से मेल खाते हैं।
पहले यह तीनों विग्रह मथुरा में स्थापित थे किंतु जब 11वीं शताब्दी मे मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के भय से इन्हें जंगल में छिपा दिया गया था। 16 वी शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर उनके शिष्यों ने इन विग्रहों को खोज निकाला और मथुरा-वृंदावन में पुनः स्थापित किया।
सन 1669 में जब औरंगजेब ने मथुरा के समस्त मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया तो गौड़ीय संप्रदाय के पुजारी इन विग्रहों को लेकर जयपुर भाग आए इन तीनों विग्रहों को जयपुर में ही स्थापित कर दिया गया।
भगवान कृष्ण का जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बिना शिखर का मंदिर। मंदिर के दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी हैं।
महाराज सवाई जयसिंह ने जयपुर बसने के बाद गोविंद को जयपुर का स्वामी घोषित कर दिया था। जयपुर के इन महाराजा की मुद्रा पर अंकित था
श्री गोविंद देव चरण, सवाई जयसिंह शरण। राजस्थान राज्य में जयपुर के विलय के बाद अपने प्रथम भाषण मे तत्कालीन महाराजा सवाई मानसिंह द्वतीय ने भी कहा की राज्य श्री गोविंद देव जी का ही है, एवं उन्हीं का रहेगा। हम तो इनके दीवान की तरह काम करते रहे हैं और आगे भी उनकी प्रेरणा से प्रजा हिट के काम मे लगे रहेंगे।
प्रचलित नाम: श्री राधा गोविंद जी मंदिर
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