प्राचीन काल की बात है, एक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण नियमानुसार भगवान विष्णु का पूजन प्रतिदिन करता था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिये और इच्छा अनुसार वरदान देने का वचन दिया।
ब्राह्मण ने माता लक्ष्मी का वास अपने घर मे होने का वरदान मांगा। ब्राह्मण के ऐसा कहने पर भगवान विष्णु ने कहा यहाँ मंदिर मैं प्रतिदिन एक स्त्री आती है और
वह यहाँ गोबर के उपले थापति है। वही माता लक्ष्मी हैं, तुम उन्हें अपने घर में आमंत्रित करो। देवी लक्ष्मी के चरण तुम्हारे घर में पड़ने से तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जाएगा।
ऐसा कहकर भगवान विष्णु अदृश्य हो गए। अब दूसरे दिन सुबह से ही ब्राह्मण देवी लक्ष्मी के इंतजार मे मंदिर के सामने बैठ गया। जब उसने लक्ष्मी जी को गोबर के उपले थापते हुये देखा, तो उसने उन्हे अपने घर पधारने का आग्रह किया।
ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गयीं कि यह बात ब्राह्मण को विष्णुजी ने ही कही है। तो उन्होने ब्राह्मण को महालक्ष्मी व्रत करने की सलाह दी।
लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा कि तुम 16 दिनों तक महालक्ष्मी व्रत करो और व्रत के आखिरी दिन चंद्रमा का पूजन करके अर्ध्य देने से तुम्हारा व्रत पूर्ण होजाएगा।
ब्राह्मण ने भी महालक्ष्मी के कहे अनुसार व्रत किया और देवी लक्ष्मी ने भी उसकी मनोकामना पूर्ण की। उसी दिन से यह व्रत श्रद्धा से किया जाता है।
एक बार महाभारत काल में हस्तिनापुर शहर में महालक्ष्मी व्रत के दिन महारानी गांधारी ने नगर की सारी स्त्रियों को पूजन के लिए आमंत्रित किया, परंतु उन्होने कुंती को आमंत्रण नहीं दिया। गांधारी के सभी पुत्रों ने पूजन के लिए अपनी माता को मिट्टी लाकर दी और इसी मिट्टी से एक विशाल हाथी का निर्माण किया गया और उसे महल के बीच मे स्थापित किया गया।
नगर की सारी स्त्रियाँ जब पूजन के लिए जाने लगी, तो कुंती उदास हो गयीं। जब कुंती के पुत्रों ने उनकी उदासी का कारण पूछा तो उसने सारी बात बताई।
इस पर अर्जुन ने कहा माता आप पूजन की तैयारी कीजिये मैं आपके लिए हाथी लेकर आता हूँ। ऐसा कहकर अर्जुन इन्द्र देव के पास गये और अपनी माता के पूजन के लिए ऐरावत को ले आए। इसके पश्चात कुंती ने सारे विधि-विधान से पूजन किया।
जब नगर की अन्य स्त्रियों को पता चला, कि कुंती के यहाँ इन्द्र देव की सारी ऐरावत आया है। तो वे भी पूजन के लिए उमड़ पड़ी और सभी ने सविधि पूजन सम्पन्न किया।