कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 32 (Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 32)


मुझे सहारा है तेरा, सब जग के पालनहार ।
कार्तिक मास के माहात्म्य का बत्तीसवाँ विस्तार ॥
भगवान श्रीकृष्ण ने आगे कहा- हे प्रिये! यमराज की आज्ञा शिरोधार्य करते हुए प्रेतपति धनेश्वर को नरकों के समीप ले गया और उसे दिखाते हुए कहने लगा- हे धनेश्वर! महान भय देने वाले इन नरकों की ओर दृष्टि डालो। इनमें पापी पुरुष सदैव दूतों द्वारा पकाए जाते हैं। यह देखो यह तप्तवाचुक नामक नरक है जिसमें देह जलने के कारण पापी विलाप कर रहे हैं। जो मनुष्य भोजन के समय भूखों को भोजन नहीं देता वह बार-बार इस नरक में डाले जाते हैं। वह प्राणी, जो गुरु, अग्नि, ब्राह्मण, गौ, वेद और राजा- इनको लात मारता है वह भयंकर नरक अतिशय पापों के करने पर मिलते हैं।

आगे देखो यह दूसरा नरक है जिसका नाम अन्धतामिस्र है। इन पापियों को सुई की भांति मुख वाले तमोत नामक कीड़े काट रहे हैं। इस नरक में दूसरों का दिल दुखाने वाले पापी गिराये जाते हैं।

यह तीसरा नरक है जिसका नाम क्रकेय है। इस नरक में पापियों को आरे से चीरा जाता है। यह नरक भी असिमत्रवण आदि भेदों से छ: प्रकार का होता है। इसमें स्त्री तथा पुत्रों के वियोग कराने वाले मनुष्यों को कड़ाही में पकाया जाता है। दो प्रियजनों को दूर करने वाले मनुष्य भी असिमत्र नामक नरक में तलवार की धार से काटे जाते हैं और कुछ भेड़ियों के डर से भाग जाते हैं।

अब अर्गल नामक यह चौथा नरक देखो। इसमें पापी विभिन्न प्रकार से चिल्लाते हुए इधर-उधर भाग रहे हैं। यह नरक भी वध आदि भेदों से छ: प्रकार का है। अब तुम यह पांचवाँ नरक देखो जिसका नाम कूटशाल्मलि है। इसमें अंगारों की तरह कष्ट देने वाले बड़े-बड़े कांटे लगे हैं। यह नरक भी यातना आदि भेदों से छ: प्रकार का है। इस नरक में परस्त्री गमन करने वाले मनुष्य डाले जाते हैं।

अब तुम यह छठा नरक देखो। उल्वण नामक नरक में सिर नीचे कर के पापियों को लटकाया जाता है। जो लोग भक्ष्याभक्ष्य का विचार नहीं करते दूसरों की निन्दा और चुगली करते हैं वे इस नरक में डाले जाते हैं। दुर्गन्ध भेद से यह नरक भी छ: प्रकार का है।

यह सातवाँ नरक है जिसका नाम कुम्भीपाक है। यह अत्यन्त भयंकर है और यह भी छ: प्रकार का है। इसमें महापातकी मनुष्यों को पकाया जाता है, इस नरक में सहस्त्रों वर्षों तक यातना भोगनी पड़ती है, यही रौरव नरक है। जो पाप इच्छारहित किये जाते हैं वह सूखे और जो पाप इच्छापूर्वक किये जाते हैं वह पाप आर्द्र कहलाते हैं। इस प्रकार शुष्क और आर्द्र भेदों से यह पाप दो प्रकार के होते हैं। इसके अलावा और भी अलग-अलग चौरासी प्रकार के पाप है। 1) अपक्रीण, 2) पाडाकतेय, 3) मलिनीकर्ण, 4) जातिभ्रंशकर्ण, 5) उपाय, 6) अतिपाप, 7) महापाप- यह सात प्रकार के पातक हैं। जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे इन सातों नरकों में उसके पाप कर्मों के अनुसार पकाया जाता है। चूंकि तुम्हें कार्तिक व्रत करने वाले प्रभु भक्तों का संसर्ग प्राप्त हुआ था उससे पुण्य की वृद्धि हो जाने के कारण ये सभी नरक तुम्हारे लिए निश्चय ही नष्ट हो गये हैं।

इस प्रकार धनेश्वर को नरकों का दर्शन कराकर प्रेतराज उसे यक्षलोक में ले गये। वहाँ जाकर उसे वहाँ का राजा बना दिया। वही कुबेर का अनुचर ‘धनक्षय’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बाद में महर्षि विश्वामित्र ने उसके नाम पर तीर्थ बनाया था।

कार्तिक मास का व्रत महाफल देने वाला है, इसके समतुल्य अन्य कोई दूसरा पुण्य कर्म नहीं है। जो भी मनुष्य इस व्रत को करता है तथा व्रत करने वाले का दर्शन करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति है।
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