कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 17 (Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 17)


भक्ति से भरे भाव हे हरि मेरे मन उपजाओ ।
सत्रहवां अध्याय कार्तिक, कृपा दृष्टि कर जाओ ॥
उस समय शिवजी के गण प्रबल थे और उन्होंने जलन्धर के शुम्भ-निशुम्भ और महासुर कालनेमि आदि को पराजित कर दिया। यह देख कर सागर पुत्र जलंधर एक विशाल रथ पर चढ़कर – जिस पर लम्बी पताका लगी हुई थी – युद्धभूमि में आया। इधर जय और शील नामक शंकर जी के गण भी युद्ध में तत्पर होकर गर्जने लगे। इस प्रकार दोनो सेनाओं के हाथी, घोड़े, शंख, भेरी और दोनों ओर के सिंहनाद से धरती त्रस्त हो गयी।

जलंधर ने कुहरे के समान असंख्य बाणों को फेंक कर पृथ्वी से आकाश तक व्याप्त कर दिया और नंदी को पांच, गणेश को पांच, वीरभद्र को एक साथ ही बीस बाण मारकर उनके शरीर को छेद दिया और मेघ के समान गर्जना करने लगा। यह देख कार्तिकेय ने भी दैत्य जलन्धर को अपनी शक्ति उठाकर मारी और घोर गर्जन किया, जिसके आघात से वह मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ा। परन्तु वह शीघ्र ही उठा पडा़ और क्रोधा विष्ट हो कार्तिकेय पर अपनी गदा से प्रहार करने लगा।

ब्रह्मा जी के वरदान की सफलता के लिए शंकर पुत्र कार्तिकेय पृथ्वी पर सो गये। गणेश जी भी गदा के प्रहार से व्याकुल होकर धरती पर गिर पड़े। नंदी व्याकुल हो गदा प्रहार से पृथ्वी पर गिर गये। फिर दैत्य ने हाथ में परिध ले शीघ्र ही वीरभद्र को पृथ्वी पर गिरा देख शंकर जी गण चिल्लाते हुए संग्राम भूमि छोड़ बड़े वेग से भाग चले। वे भागे हुए गण शीघ्र ही शिवजी के पास आ गये और व्याकुलता से युद्ध का सब समाचार कह सुनाया। लीलाधारी भगवान ने उन्हें अभय दे सबका सन्तोषवर्द्धन किया।
Katha Kartik Mas KathaKartik KathaKartik Month KathaKrishna KathaShri Hari KathaShri Vishnu KathaISKCON Katha
अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!


* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा | बृहस्पतिदेव की कथा

भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्‌मणों...

अन्नपूर्णा माता व्रत कथा

मां अन्नपूर्णा माता का महाव्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष पंचमी से प्रारम्भ होता है और मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को समाप्त होता है। यह उत्तमोत्तम व्रत सत्रह दिनों का होता है और कई भक्त 21दिन तक भी पालन करते हैं।

मंगलवार व्रत कथा

सर्वसुख, राजसम्मान तथा पुत्र-प्राप्ति के लिए मंगलवार व्रत रखना शुभ माना जाता है। पढ़े हनुमान जी से जुड़ी मंगलवार व्रत कथा...

सोमवार व्रत कथा

किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर के सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे..

मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा कि अगहन कृष्ण चतुर्थी संकटा कहलाती है, उस दिन किस गणेश की पूजा किस रीति से करनी चाहिए?...