विनय पत्रिका: सूर्य स्तुति (Vinay Patrika: Sury Stuti)


दीन-दयालु दिवाकर देवा ।
कर मुनि, मनुज, सुरासुर सेवा ॥ १ ॥
हिम-तम-करि केहरि करमाली ।
दहन दोष-दुख-दुरित-रुजाली ॥ २ ॥

कोक-कोकनद-लोक-प्रकासी ।
तेज -प्रताप-रूप-रस-रासी ॥ ३ ॥

सारथि-पंगु, पंगुदिब्य रथ-गामी ।
हरि-संकर -बिधि-मूरति स्वामी ॥ ४ ॥

बेद पुरान प्रगट जस जागै ।
तुलसी राम-भगति बर माँगै ॥ ५ ॥
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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 41

बुध पुरान श्रुति संमत बानी । कही बिभीषन नीति बखानी ॥ सुनत दसानन उठा रिसाई ।..

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 44

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।..