विनय पत्रिका (Vinay Patrika)


तुलसीदासजी असीघाट पर रहने लगे, तब एक रात कलियुग मूर्तरूप धारणकर उनके पास आऐ और उन्हें त्रास देने लगे। गोस्वामीजी ने श्री हनुमान जी का ध्यान किया, हनुमान जी ने उन्हें विनय के पदों को रचने के लिए कहा, अतः गोस्वामीजी ने विनय-पत्रिका लिखी और श्री रघुनाथ जी के चरणों में उसे समर्पित कर दिया। श्री रघुनाथ जी ने उस पर अपने हस्ताक्षर किए तथा तुलसीदास जी को निर्भय कर दिया।
गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

विनय-पत्रिका तुलसीदास के 279 स्तोत्र गीतों का संग्रह है जो हिन्दुस्तानी संगीत के 20 रागों में निबद्ध हैं। तुलसी ने विनयपत्रिका में आसावरी, बिलावल, विलास, भैरवी, मलार, मारू, रामकली, ललित, विभास, सारंग, सोरठ, सुहों बिलावल, दंडक, कान्हरा, केदारा, जैतश्री, टोड़ी, नट, वसंत और कल्याण में पदों को निबद्ध किया है। अधिकांश पदों में कल्याण और बिलावल का प्रयोग किया गया है।

इन पदों में गणेश, सूर्य, शिव, पार्वती, गंगा, यमुना, काशी, चित्रकूट, हनुमान, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता और विष्णु के एक विग्रह विन्दु माधव के गुणगान के साथ राम की स्तुतियाँ हैं।

विनय पत्रिका के पद मुक्तक होते हुए भी एक निश्चित क्रम मे बँधे हुए हैं। विनयपत्रिका को भक्तिरस ओतप्रोत सर्वश्रेष्ठ भारतीय ग्रंथ माना गया है।

संगीत-कला का भक्ति में अत्युच्च स्थान माना गया है, इस दृष्टि से देखने से पाएँगे कि विनयपत्रिका के सभी पदों को संगीतमय रागों के साथ गाया जा सकता है। प्रत्येक पद किसी न किसी राग में निबद्ध है। प्रत्येक पद के भाव के अनुसार ही उसे किसी विशेष राग या रागिनी में निबद्ध किया गया है।
Granth Vinaypatrika GranthVinay Pad GranthRam Vinayavali GranthTulsidas Ji Rachit Granth
अगर आपको यह ग्रंथ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!


* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 41

बुध पुरान श्रुति संमत बानी । कही बिभीषन नीति बखानी ॥ सुनत दसानन उठा रिसाई ।..

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 44

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।..