श्रीमद्‍भगवद्‍गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)


श्रीमद्भागवत गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद है। प्रश्न-उत्तर शैली मे श्रीमद्भागवत गीता से संबंधित कुछ तथ्य..श्रीमद्भागवत गीता किसको किसने सुनाई?
उत्तर: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।

श्रीमद्भागवत गीता कब सुनाई?
उत्तर: आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।

श्रीमद्भागवत गीता कौनसी तिथि को सुनाई?
उत्तर: एकादशी (गीता जयंती)।

श्रीमद्भागवत गीता कहाँ सुनाई?
उत्तर: कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।

श्रीमद्भागवत गीता कितनी देर मे सुनाई?
उत्तर: लगभग 45 मिनट मे।

श्रीमद्भागवत गीता मे कुल कितने अध्याय है?
उत्तर: 18 अध्याय।

श्रीमद्भागवत गीता मे कुल कितने श्लोक है?
उत्तर: 700 श्लोक।

श्रीमद्भागवत गीता को अर्जुन के अलावा और किन-किन लोगो ने सुना?
उत्तर: धृतराष्ट्र एवं संजय ने

अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उत्तर: भगवान सूर्यदेव को।

श्रीमद्भागवत गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उत्तर: उपनिषदों में।

श्रीमद्भागवत गीता किस महाग्रंथ का भाग है?
उत्तर: गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।

श्रीमद्भागवत गीता का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर: गीतोपनिषद।

श्रीमद्भागवत गीता का प्रथम श्लोक किसने कहा?
उत्तर: धृतराष्ट्र ने।

श्रीमद्भागवत गीता मे किसने कितने श्लोक कहे है?
उत्तर: भगवान श्रीकृष्ण जी ने 574, अर्जुन ने 85, धृतराष्ट्र ने 1, संजय ने 40।
Shrimad Bhagwat Geeta - Read in English
The Shrimad Bhagwat Geeta has 18 chapters and 700 verses, another name of the Gita is Geetopanishad. Some facts related to Srimad Bhagwat Geeta in question-answer style ..
यह भी जानें
    Granth Bhagwat Geeta Granth
    अगर आपको यह ग्रंथ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!


    * कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

    विनय पत्रिका

    गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

    श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 41

    बुध पुरान श्रुति संमत बानी । कही बिभीषन नीति बखानी ॥ सुनत दसानन उठा रिसाई ।..

    श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 44

    कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।..