श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: षष्ठम पद (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 6)


चौपाई:
लंका निसिचर निकर निवासा ।
इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा ॥
मन महुँ तरक करै कपि लागा ।
तेहीं समय बिभीषनु जागा ॥1॥
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा ।
हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा ॥
एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी ।
साधु ते होइ न कारज हानी ॥2॥

बिप्र रुप धरि बचन सुनाए ।
सुनत बिभीषण उठि तहँ आए ॥
करि प्रनाम पूँछी कुसलाई ।
बिप्र कहहु निज कथा बुझाई ॥3॥

की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई ।
मोरें हृदय प्रीति अति होई ॥
की तुम्ह रामु दीन अनुरागी ।
आयहु मोहि करन बड़भागी ॥4॥

दोहा:
तब हनुमंत कही सब
राम कथा निज नाम ।
सुनत जुगल तन पुलक मन
मगन सुमिरि गुन ग्राम ॥6॥
अर्थात
लंका तो राक्षसों के समूह का निवास स्थान है। यहाँ सज्जन (साधु पुरुष) का निवास कहाँ? हनुमान्‌जी मन में इस प्रकार तर्क करने लगे। उसी समय विभीषणजी जागे॥1॥

उन्होंने (विभीषण ने) राम नाम का स्मरण (उच्चारण) किया। हनमान्‌जी ने उन्हें सज्जन जाना और हृदय में हर्षित हुए। (हनुमान्‌जी ने विचार किया कि) इनसे हठ करके (अपनी ओर से ही) परिचय करूँगा, क्योंकि साधु से कार्य की हानि नहीं होती। (प्रत्युत लाभ ही होता है)॥2॥

ब्राह्मण का रूप धरकर हनुमान्‌जी ने उन्हें वचन सुनाए (पुकारा)। सुनते ही विभीषणजी उठकर वहाँ आए। प्रणाम करके कुशल पूछी (और कहा कि) हे ब्राह्मणदेव! अपनी कथा समझाकर कहिए॥3॥

क्या आप हरिभक्तों में से कोई हैं? क्योंकि आपको देखकर मेरे हृदय में अत्यंत प्रेम उमड़ रहा है। अथवा क्या आप दीनों से प्रेम करने वाले स्वयं श्री रामजी ही हैं जो मुझे बड़भागी बनाने (घर-बैठे दर्शन देकर कृतार्थ करने) आए हैं?॥4॥

तब हनुमान्‌जी ने श्री रामचंद्रजी की सारी कथा कहकर अपना नाम बताया। सुनते ही दोनों के शरीर पुलकित हो गए और श्री रामजी के गुण समूहों का स्मरण करके दोनों के मन (प्रेम और आनंद में) मग्न हो गए॥6॥
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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 41

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