चौपाई:
राम तेज बल बुधि बिपुलाई ।
सेष सहस सत सकहिं न गाई ॥
सक सर एक सोषि सत सागर ।
तव भ्रातहि पूँछेउ नय नागर ॥1॥
तासु बचन सुनि सागर पाहीं ।
मागत पंथ कृपा मन माहीं ॥
सुनत बचन बिहसा दससीसा ।
जौं असि मति सहाय कृत कीसा ॥2॥
सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई ।
सागर सन ठानी मचलाई ॥
मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई ।
रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई ॥3॥
सचिव सभीत बिभीषन जाकें ।
बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें
सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी ।
समय बिचारि पत्रिका काढ़ी ॥4॥
रामानुज दीन्ही यह पाती ।
नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती ॥
बिहसि बाम कर लीन्ही रावन ।
सचिव बोलि सठ लाग बचावन ॥5॥
दोहा:
बातन्ह मनहि रिझाइ सठ
जनि घालसि कुल खीस ।
राम बिरोध न उबरसि
सरन बिष्नु अज ईस ॥56 (क)॥
की तजि मान अनुज इव
प्रभु पद पंकज भृंग ।
होहि कि राम सरानल
खल कुल सहित पतंग ॥56 (ख)॥
श्री रामचंद्रजी के तेज (सामर्थ्य), बल और बुद्धि की अधिकता को लाखों शेष भी नहीं गा सकते। वे एक ही बाण से सैकड़ों समुद्रों को सोख सकते हैं, परंतु नीति निपुण श्री रामजी ने (नीति की रक्षा के लिए) आपके भाई से उपाय पूछा॥1॥
उनके (आपके भाई के) वचन सुनकर वे (श्री रामजी) समुद्र से राह माँग रहे हैं, उनके मन में कृपा भी है (इसलिए वे उसे सोखते नहीं)। दूत के ये वचन सुनते ही रावण खूब हँसा (और बोला-) जब ऐसी बुद्धि है, तभी तो वानरों को सहायक बनाया है!॥2॥
स्वाभाविक ही डरपोक विभीषण के वचन को प्रमाण करके उन्होंने समुद्र से मचलना (बालहठ) ठाना है। अरे मूर्ख! झूठी बड़ाई क्या करता है? बस, मैंने शत्रु (राम) के बल और बुद्धि की थाह पा ली॥3॥
जिसके विभिष्ण जैसा डरपोक मंत्री हो , उसे जगत में विजय और विभूति(ऐश्र्वर्य ) कहाँ ? दुष्ट रावणके वचन सुन कर दूत को क्रोध बढ़ गया! उस ने मौका समझ कर पत्रिका निकाली॥4॥
(और कहा-) श्री रामजी के छोटे भाई लक्ष्मण ने यह पत्रिका दी है। हे नाथ! इसे बचवाकर छाती ठंडी कीजिए। रावण ने हँसकर उसे बाएँ हाथ से लिया और मंत्री को बुलवाकर वह मूर्ख उसे बँचाने लगा॥5॥
(पत्रिका में लिखा था-) अरे मूर्ख! केवल बातों से ही मन को रिझाकर अपने कुल को नष्ट-भ्रष्ट न कर। श्री रामजी से विरोध करके तू विष्णु, ब्रह्मा और महेश की शरण जाने पर भी नहीं बचेगा॥56 (क)॥
या तो अभिमान छोड़कर अपने छोटे भाई विभीषण की भाँति प्रभु के चरण कमलों का भ्रमर बन जा। अथवा रे दुष्ट! श्री रामजी के बाण रूपी अग्नि में परिवार सहित पतिंगा हो जा (दोनों में से जो अच्छा लगे सो कर)॥56 (ख)॥