श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 47 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 47)


चौपाई:
तब लगि हृदयँ बसत खल नाना ।
लोभ मोह मच्छर मद माना ॥
जब लगि उर न बसत रघुनाथा ।
धरें चाप सायक कटि भाथा ॥1॥ममता तरुन तमी अँधिआरी ।
राग द्वेष उलूक सुखकारी ॥
तब लगि बसति जीव मन माहीं ।
जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं ॥2॥

अब मैं कुसल मिटे भय भारे ।
देखि राम पद कमल तुम्हारे ॥
तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला ।
ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला ॥3॥

मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ ।
सुभ आचरनु कीन्ह नहिं काऊ ॥
जासु रूप मुनि ध्यान न आवा ।
तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा ॥4॥

दोहा:
अहोभाग्य मम अमित अति
राम कृपा सुख पुंज ।
देखेउँ नयन बिरंचि सिब सेब्य
जुगल पद कंज ॥47॥
हिन्दी भावार्थ
लोभ, मोह, मत्सर (डाह), मद और मान आदि अनेकों दुष्ट तभी तक हृदय में बसते हैं, जब तक कि धनुष-बाण और कमर में तरकस धारण किए हुए श्री रघुनाथजी हृदय में नहीं बसते॥1॥

ममता पूर्ण अँधेरी रात है, जो राग-द्वेष रूपी उल्लुओं को सुख देने वाली है। वह (ममता रूपी रात्रि) तभी तक जीव के मन में बसती है, जब तक प्रभु (आप) का प्रताप रूपी सूर्य उदय नहीं होता॥2॥

हे श्री रामजी! आपके चरणारविन्द के दर्शन कर अब मैं कुशल से हूँ, मेरे भारी भय मिट गए। हे कृपालु! आप जिस पर अनुकूल होते हैं, उसे तीनों प्रकार के भवशूल (आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप) नहीं व्यापते॥3॥

मैं अत्यंत नीच स्वभाव का राक्षस हूँ। मैंने कभी शुभ आचरण नहीं किया। जिनका रूप मुनियों के भी ध्यान में नहीं आता, उन प्रभु ने स्वयं हर्षित होकर मुझे हृदय से लगा लिया॥4॥

हे कृपा और सुख के पुंज श्री रामजी! मेरा अत्यंत असीम सौभाग्य है, जो मैंने ब्रह्मा और शिवजी के द्वारा सेवित युगल चरण कमलों को अपने नेत्रों से देखा॥47॥
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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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