चौपाई:
सोइ रावन कहुँ बनि सहाई ।
अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई ॥
अवसर जानि बिभीषनु आवा ।
भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा ॥1॥
पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन ।
बोला बचन पाइ अनुसासन ॥
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता ।
मति अनुरुप कहउँ हित ताता ॥2॥
जो आपन चाहै कल्याना ।
सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना ॥
सो परनारि लिलार गोसाईं ।
तजउ चउथि के चंद कि नाई ॥3॥
चौदह भुवन एक पति होई ।
भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई ॥
गुन सागर नागर नर जोऊ ।
अलप लोभ भल कहइ न कोऊ ॥4॥
दोहा:
काम क्रोध मद लोभ सब
नाथ नरक के पंथ ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु
भजहिं जेहि संत ॥38॥
हिन्दी भावार्थ
रावण के लिए भी वही सहायता (संयोग) आ बनी है। मंत्री उसे सुना-सुनाकर (मुँह पर) स्तुति करते हैं। (इसी समय) अवसर जानकर विभीषणजी आए। उन्होंने बड़े भाई के चरणों में सिर नवाया॥1॥
फिर से सिर नवाकर अपने आसन पर बैठ गए और आज्ञा पाकर ये वचन बोले- हे कृपाल जब आपने मुझसे बात (राय) पूछी ही है, तो हे तात! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार आपके हित की बात कहता हूँ-॥2॥
जो मनुष्य अपना कल्याण, सुंदर यश, सुबुद्धि, शुभ गति और नाना प्रकार के सुख चाहता हो, वह हे स्वामी! परस्त्री के ललाट को चौथ के चंद्रमा की तरह त्याग दे (अर्थात् जैसे लोग चौथ के चंद्रमा को नहीं देखते, उसी प्रकार परस्त्री का मुख ही न देखे)॥3॥
चौदहों भुवनों का एक ही स्वामी हो, वह भी जीवों से वैर करके ठहर नहीं सकता (नष्ट हो जाता है) जो मनुष्य गुणों का समुद्र और चतुर हो, उसे चाहे थोड़ा भी लोभ क्यों न हो, तो भी कोई भला नहीं कहता॥4॥
हे नाथ! काम, क्रोध, मद और लोभ- ये सब नरक के रास्ते हैं, इन सबको छोड़कर श्री रामचंद्रजी को भजिए, जिन्हें संत (सत्पुरुष) भजते हैं॥38॥
Granth Ramcharitmanas GranthSundar Kand Granth
अगर आपको यह ग्रंथ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।
** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक:
यहाँ साझा करें।