श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 30 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 30)


चौपाई:
जामवंत कह सुनु रघुराया ।
जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया ॥
ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर ।
सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर ॥1॥सोइ बिजई बिनई गुन सागर ।
तासु सुजसु त्रेलोक उजागर ॥
प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू ।
जन्म हमार सुफल भा आजू ॥2॥

नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी ।
सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी ॥
पवनतनय के चरित सुहाए ।
जामवंत रघुपतिहि सुनाए ॥3॥

सुनत कृपानिधि मन अति भाए ।
पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए ॥
कहहु तात केहि भाँति जानकी ।
रहति करति रच्छा स्वप्रान की ॥4॥

दोहा:
नाम पाहरु दिवस निसि
ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित
जाहिं प्रान केहिं बाट ॥30॥
अर्थात
जाम्बवान्‌ ने कहा- हे रघुनाथजी! सुनिए। हे नाथ! जिस पर आप दया करते हैं, उसे सदा कल्याण और निरंतर कुशल है। देवता, मनुष्य और मुनि सभी उस पर प्रसन्न रहते हैं॥1॥

वही विजयी है, वही विनयी है और वही गुणों का समुद्र बन जाता है। उसी का सुंदर यश तीनों लोकों में प्रकाशित होता है। प्रभु की कृपा से सब कार्य हुआ। आज हमारा जन्म सफल हो गया॥2॥

हे नाथ! पवनपुत्र हनुमान्‌ ने जो करनी की, उसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता। तब जाम्बवान्‌ ने हनुमान्‌जी के सुंदर चरित्र (कार्य) श्री रघुनाथजी को सुनाए॥3॥

(वे चरित्र) सुनने पर कृपानिधि श्री रामचंदजी के मन को बहुत ही अच्छे लगे। उन्होंने हर्षित होकर हनुमान्‌जी को फिर हृदय से लगा लिया और कहा- हे तात! कहो, सीता किस प्रकार रहती और अपने प्राणों की रक्षा करती हैं?॥4॥

(हनुमान्‌जी ने कहा-) आपका नाम रात-दिन पहरा देने वाला है, आपका ध्यान ही किंवाड़ है। नेत्रों को अपने चरणों में लगाए रहती हैं, यही ताला लगा है, फिर प्राण जाएँ तो किस मार्ग से?॥30॥
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गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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