चौपाई:
जौं न होति सीता सुधि पाई ।
मधुबन के फल सकहिं कि खाई ॥
एहि बिधि मन बिचार कर राजा ।
आइ गए कपि सहित समाजा ॥1॥
आइ सबन्हि नावा पद सीसा ।
मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा ॥
पूँछी कुसल कुसल पद देखी ।
राम कृपाँ भा काजु बिसेषी ॥2॥
नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना ।
राखे सकल कपिन्ह के प्राना ॥
सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ ।
कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ ॥4॥
राम कपिन्ह जब आवत देखा ।
किएँ काजु मन हरष बिसेषा ॥
फटिक सिला बैठे द्वौ भाई ।
परे सकल कपि चरनन्हि जाई ॥5॥
दोहा:
प्रीति सहित सब भेटे
रघुपति करुना पुंज ।
पूँछी कुसल नाथ अब
कुसल देखि पद कंज ॥29॥
यदि सीताजी की खबर न पाई होती तो क्या वे मधुवन के फल खा सकते थे? इस प्रकार राजा सुग्रीव मन में विचार कर ही रहे थे कि समाज सहित वानर आ गए॥1॥
(सबने आकर सुग्रीव के चरणों में सिर नवाया। कपिराज सुग्रीव सभी से बड़े प्रेम के साथ मिले। उन्होंने कुशल पूछी, (तब वानरों ने उत्तर दिया-) आपके चरणों के दर्शन से सब कुशल है। श्री रामजी की कृपा से विशेष कार्य हुआ (कार्य में विशेष सफलता हुई है)॥2॥
हे नाथ! हनुमान ने सब कार्य किया और सब वानरों के प्राण बचा लिए। यह सुनकर सुग्रीवजी हनुमान्जी से फिर मिले और सब वानरों समेत श्री रघुनाथजी के पास चले॥3॥
श्री रामजी ने जब वानरों को कार्य किए हुए आते देखा तब उनके मन में विशेष हर्ष हुआ। दोनों भाई स्फटिक शिला पर बैठे थे। सब वानर जाकर उनके चरणों पर गिर पड़े॥4॥
दया की राशि श्री रघुनाथजी सबसे प्रेम सहित गले लगकर मिले और कुशल पूछी। (वानरों ने कहा-) हे नाथ! आपके चरण कमलों के दर्शन पाने से अब कुशल है॥29॥