श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 28 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 28)


चौपाई:
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी ।
गर्भ स्त्रवहिं सुनि निसिचर नारी ॥
नाघि सिंधु एहि पारहि आवा ।
सबद किलकिला कपिन्ह सुनावा ॥1॥हरषे सब बिलोकि हनुमाना ।
नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना ॥
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा ।
कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा ॥2॥

मिले सकल अति भए सुखारी ।
तलफत मीन पाव जिमि बारी ॥
चले हरषि रघुनायक पासा ।
पूँछत कहत नवल इतिहासा ॥3॥

तब मधुबन भीतर सब आए ।
अंगद संमत मधु फल खाए ॥
रखवारे जब बरजन लागे ।
मुष्टि प्रहार हनत सब भागे ॥4॥

दोहा:
जाइ पुकारे ते सब
बन उजार जुबराज ।
सुनि सुग्रीव हरष कपि
करि आए प्रभु काज ॥28॥
अर्थात
चलते समय उन्होंने महाध्वनि से भारी गर्जन किया, जिसे सुनकर राक्षसों की स्त्रियों के गर्भ गिरने लगे। समुद्र लाँघकर वे इस पार आए और उन्होंने वानरों को किलकिला शब्द (हर्षध्वनि) सुनाया॥1॥

हनुमान्‌जी को देखकर सब हर्षित हो गए और तब वानरों ने अपना नया जन्म समझा। हनुमान्‌जी का मुख प्रसन्न है और शरीर में तेज विराजमान है, (जिससे उन्होंने समझ लिया कि) ये श्री रामचंद्रजी का कार्य कर आए हैं॥2॥

सब हनुमान्‌जी से मिले और बहुत ही सुखी हुए, जैसे तड़पती हुई मछली को जल मिल गया हो। सब हर्षित होकर नए-नए इतिहास (वृत्तांत) पूछते- कहते हुए श्री रघुनाथजी के पास चले॥3॥

तब सब लोग मधुवन के भीतर आए और अंगद की सम्मति से सबने मधुर फल (या मधु और फल) खाए। जब रखवाले बरजने लगे, तब घूँसों की मार मारते ही सब रखवाले भाग छूटे॥4॥

उन सबने जाकर पुकारा कि युवराज अंगद वन उजाड़ रहे हैं। यह सुनकर सुग्रीव हर्षित हुए कि वानर प्रभु का कार्य कर आए हैं॥28॥
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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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