श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 26 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 26)


चौपाई:
देह बिसाल परम हरुआई ।
मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई ॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला ।
झपट लपट बहु कोटि कराला ॥1॥
तात मातु हा सुनिअ पुकारा ।
एहि अवसर को हमहि उबारा ॥
हम जो कहा यह कपि नहिं होई ।
बानर रूप धरें सुर कोई ॥2॥

साधु अवग्या कर फलु ऐसा ।
जरइ नगर अनाथ कर जैसा ॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं ।
एक बिभीषन कर गृह नाहीं ॥3॥

ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा ।
जरा न सो तेहि कारन गिरिजा ॥
उलटि पलटि लंका सब जारी ।
कूदि परा पुनि सिंधु मझारी ॥4॥

दोहा:
पूँछ बुझाइ खोइ श्रम
धरि लघु रूप बहोरि ।
जनकसुता के आगें
ठाढ़ भयउ कर जोरि ॥26॥
अर्थात
देह बड़ी विशाल, परंतु बहुत ही हल्की (फुर्तीली) है। वे दौड़कर एक महल से दूसरे महल पर चढ़ जाते हैं। नगर जल रहा है लोग बेहाल हो गए हैं। आग की करोड़ों भयंकर लपटें झपट रही हैं॥1॥

हाय बप्पा! हाय मैया! इस अवसर पर हमें कौन बचाएगा? (चारों ओर) यही पुकार सुनाई पड़ रही है। हमने तो पहले ही कहा था कि यह वानर नहीं है, वानर का रूप धरे कोई देवता है!॥2॥

साधु के अपमान का यह फल है कि नगर, अनाथ के नगर की तरह जल रहा है। हनुमान्‌जी ने एक ही क्षण में सारा नगर जला डाला। एक विभीषण का घर नहीं जलाया॥3॥

(शिवजी कहते हैं-) हे पार्वती! जिन्होंने अग्नि को बनाया, हनुमान्‌जी उन्हीं के दूत हैं। इसी कारण वे अग्नि से नहीं जले। हनुमान्‌जी ने उलट-पलटकर (एक ओर से दूसरी ओर तक) सारी लंका जला दी। फिर वे समुद्र में कूद पड़े॥ 4॥

पूँछ बुझाकर, थकावट दूर करके और फिर छोटा सा रूप धारण कर हनुमान्‌जी श्री जानकीजी के सामने हाथ जोड़कर जा खड़े हुए॥26॥
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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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