श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 23 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 23)


चौपाई:
राम चरन पंकज उर धरहू ।
लंका अचल राज तुम्ह करहू ॥
रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका ।
तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका ॥1॥
राम नाम बिनु गिरा न सोहा ।
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा ॥
बसन हीन नहिं सोह सुरारी ।
सब भूषण भूषित बर नारी ॥2॥

राम बिमुख संपति प्रभुताई ।
जाइ रही पाई बिनु पाई ॥
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं ।
बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं ॥3॥

सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी ।
बिमुख राम त्राता नहिं कोपी ॥
संकर सहस बिष्नु अज तोही ।
सकहिं न राखि राम कर द्रोही ॥4॥

दोहा:
मोहमूल बहु सूल प्रद
त्यागहु तम अभिमान ।
भजहु राम रघुनायक
कृपा सिंधु भगवान ॥23 ॥
अर्थात
तुम श्री रामजी के चरण कमलों को हृदय में धारण करो और लंका का अचल राज्य करो। ऋषि पुलस्त्यजी का यश निर्मल चंद्रमा के समान है। उस चंद्रमा में तुम कलंक न बनो॥1॥

राम नाम के बिना वाणी शोभा नहीं पाती, मद-मोह को छोड़, विचारकर देखो। हे देवताओं के शत्रु! सब गहनों से सजी हुई सुंदरी स्त्री भी कपड़ों के बिना शोभा नहीं पाती॥2॥

रामविमुख पुरुष की संपत्ति और प्रभुता रही हुई भी चली जाती है और उसका पाना न पाने के समान है। जिन नदियों के मूल में कोई जलस्रोत नहीं है। (अर्थात्‌ जिन्हें केवल बरसात ही आसरा है) वे वर्षा बीत जाने पर फिर तुरंत ही सूख जाती हैं॥3॥

हे रावण! सुनो, मैं प्रतिज्ञा करके कहता हूँ कि रामविमुख की रक्षा करने वाला कोई भी नहीं है। हजारों शंकर, विष्णु और ब्रह्मा भी श्री रामजी के साथ द्रोह करने वाले तुमको नहीं बचा सकते॥4॥

मोह ही जिनका मूल है ऐसे (अज्ञानजनित), बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभिमान का त्याग कर दो और रघुकुल के स्वामी, कृपा के समुद्र भगवान्‌ श्री रामचंद्रजी का भजन करो॥23॥
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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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