चौपाई:
कह लंकेस कवन तैं कीसा ।
केहिं के बल घालेहि बन खीसा ॥
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही ।
देखउँ अति असंक सठ तोही ॥1॥
मारे निसिचर केहिं अपराधा ।
कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा ॥
सुन रावन ब्रह्मांड निकाया ।
पाइ जासु बल बिरचित माया ॥2॥
जाकें बल बिरंचि हरि ईसा ।
पालत सृजत हरत दससीसा ॥
जा बल सीस धरत सहसानन ।
अंडकोस समेत गिरि कानन ॥3॥
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता ।
तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता ॥
हर कोदंड कठिन जेहि भंजा ।
तेहि समेत नृप दल मद गंजा ॥4॥
खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली ।
बधे सकल अतुलित बलसाली ॥5॥
दोहा:
जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।
तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥
लंकापति रावण ने कहा- रे वानर! तू कौन है? किसके बल पर तूने वन को उजाड़कर नष्ट कर डाला? क्या तूने कभी मुझे (मेरा नाम और यश) कानों से नहीं सुना? रे शठ! मैं तुझे अत्यंत निःशंख देख रहा हूँ॥1॥
तूने किस अपराध से राक्षसों को मारा? रे मूर्ख! बता, क्या तुझे प्राण जाने का भय नहीं है? (हनुमान्जी ने कहा-) हे रावण! सुन, जिनका बल पाकर माया संपूर्ण ब्रह्मांडों के समूहों की रचना करती है॥2॥
जिनके बल से हे दशशीश! ब्रह्मा, विष्णु, महेश (क्रमशः) सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करते हैं, जिनके बल से सहस्रमुख (फणों) वाले शेषजी पर्वत और वनसहित समस्त ब्रह्मांड को सिर पर धारण करते हैं॥3॥
जो देवताओं की रक्षा के लिए नाना प्रकार की देह धारण करते हैं और जो तुम्हारे जैसे मूर्खों को शिक्षा देने वाले हैं, जिन्होंने शिवजी के कठोर धनुष को तोड़ डाला और उसी के साथ राजाओं के समूह का गर्व चूर्ण कर दिया॥4॥
जिन्होंने खर, दूषण, त्रिशिरा और बालि को मार डाला, जो सब के सब अतुलनीय बलवान् थे॥5॥
जिनके लेशमात्र बल से तुमने समस्त चराचर जगत् को जीत लिया और जिनकी प्रिय पत्नी को तुम (चोरी से) हर लाए हो, मैं उन्हीं का दूत हूँ॥21॥