चौपाई:
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना ।
पठएसि मेघनाद बलवाना ॥
मारसि जनि सुत बांधेसु ताही ।
देखिअ कपिहि कहाँ कर आही ॥1॥
चला इंद्रजित अतुलित जोधा ।
बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा ॥
कपि देखा दारुन भट आवा ।
कटकटाइ गर्जा अरु धावा ॥2॥
अति बिसाल तरु एक उपारा ।
बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा ॥
रहे महाभट ताके संगा ।
गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा ॥3॥
तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा ।
भिरे जुगल मानहुँ गजराजा ॥
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई ।
ताहि एक छन मुरुछा आई ॥4॥
उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया।
जीति न जाइ प्रभंजन जाया ॥5॥
दोहा:
ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा
कपि मन कीन्ह बिचार ।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ
महिमा मिटइ अपार ॥19॥
पुत्र का वध सुनकर रावण क्रोधित हो उठा और उसने (अपने जेठे पुत्र) बलवान् मेघनाद को भेजा। (उससे कहा कि-) हे पुत्र! मारना नहीं उसे बाँध लाना। उस बंदर को देखा जाए कि कहाँ का है॥1॥
इंद्र को जीतने वाला अतुलनीय योद्धा मेघनाद चला। भाई का मारा जाना सुन उसे क्रोध हो आया। हनुमान्जी ने देखा कि अबकी भयानक योद्धा आया है। तब वे कटकटाकर गर्जे और दौड़े॥2॥
उन्होंने एक बहुत बड़ा वृक्ष उखाड़ लिया और (उसके प्रहार से) लंकेश्वर रावण के पुत्र मेघनाद को बिना रथ का कर दिया। (रथ को तोड़कर उसे नीचे पटक दिया)। उसके साथ जो बड़े-बड़े योद्धा थे, उनको पकड़-पकड़कर हनुमान्जी अपने शरीर से मसलने लगे॥3॥
उन सबको मारकर फिर मेघनाद से लड़ने लगे। (लड़ते हुए वे ऐसे मालूम होते थे) मानो दो गजराज (श्रेष्ठ हाथी) भिड़ गए हों। हनुमान्जी उसे एक घूँसा मारकर वृक्ष पर जा चढ़े। उसको क्षणभर के लिए मूर्च्छा आ गई॥4॥
फिर उठकर उसने बहुत माया रची, परंतु पवन के पुत्र उससे जीते नहीं जाते॥5॥
अंत में उसने ब्रह्मास्त्र का संधान (प्रयोग) किया, तब हनुमान्जी ने मन में विचार किया कि यदि ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूँ तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी॥19॥