श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 18 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 18)


चौपाई:
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा ।
फल खाएसि तरु तोरैं लागा ॥
रहे तहाँ बहु भट रखवारे ।
कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे ॥1॥नाथ एक आवा कपि भारी ।
तेहिं असोक बाटिका उजारी ॥
खाएसि फल अरु बिटप उपारे ।
रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे ॥2॥

सुनि रावन पठए भट नाना ।
तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना ॥
सब रजनीचर कपि संघारे ।
गए पुकारत कछु अधमारे ॥3॥

पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा ।
चला संग लै सुभट अपारा ॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा ।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा ॥4॥

दोहा:
कछु मारेसि कछु मर्देसि
कछु मिलएसि धरि धूरि ।
कछु पुनि जाइ पुकारे
प्रभु मर्कट बल भूरि ॥18॥
अर्थात
वे सीताजी को सिर नवाकर चले और बाग में घुस गए। फल खाए और वृक्षों को तोड़ने लगे। वहाँ बहुत से योद्धा रखवाले थे। उनमें से कुछ को मार डाला और कुछ ने जाकर रावण से पुकार की-॥1॥

(और कहा-) हे नाथ! एक बड़ा भारी बंदर आया है। उसने अशोक वाटिका उजाड़ डाली। फल खाए, वृक्षों को उखाड़ डाला और रखवालों को मसल-मसलकर जमीन पर डाल दिया॥2॥

यह सुनकर रावण ने बहुत से योद्धा भेजे। उन्हें देखकर हनुमान्‌जी ने गर्जना की। हनुमान्‌जी ने सब राक्षसों को मार डाला, कुछ जो अधमरे थे, चिल्लाते हुए गए॥3॥

फिर रावण ने अक्षयकुमार को भेजा। वह असंख्य श्रेष्ठ योद्धाओं को साथ लेकर चला। उसे आते देखकर हनुमान्‌जी ने एक वृक्ष (हाथ में) लेकर ललकारा और उसे मारकर महाध्वनि (बड़े जोर) से गर्जना की॥4॥

उन्होंने सेना में से कुछ को मार डाला और कुछ को मसल डाला और कुछ को पकड़-पकड़कर धूल में मिला दिया। कुछ ने फिर जाकर पुकार की कि हे प्रभु! बंदर बहुत ही बलवान्‌ है॥18॥
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गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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