श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 10 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 10)


चौपाई:
सीता तैं मम कृत अपमाना ।
कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना ॥
नाहिं त सपदि मानु मम बानी ।
सुमुखि होति न त जीवन हानी ॥1॥स्याम सरोज दाम सम सुंदर ।
प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर ॥
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा ।
सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा ॥2॥

चंद्रहास हरु मम परितापं ।
रघुपति बिरह अनल संजातं ॥
सीतल निसित बहसि बर धारा ।
कह सीता हरु मम दुख भारा ॥3॥

सुनत बचन पुनि मारन धावा ।
मयतनयाँ कहि नीति बुझावा ॥
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई ।
सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई ॥4॥

मास दिवस महुँ कहा न माना ।
तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना ॥5॥

दोहा:
भवन गयउ दसकंधर
इहाँ पिसाचिनि बृंद ।
सीतहि त्रास देखावहि
धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥
अर्थात
सीता! तूने मेरा अपनाम किया है। मैं तेरा सिर इस कठोर कृपाण से काट डालूँगा। नहीं तो (अब भी) जल्दी मेरी बात मान ले। हे सुमुखि! नहीं तो जीवन से हाथ धोना पड़ेगा॥1॥

(सीताजी ने कहा-) हे दशग्रीव! प्रभु की भुजा जो श्याम कमल की माला के समान सुंदर और हाथी की सूँड के समान (पुष्ट तथा विशाल) है, या तो वह भुजा ही मेरे कंठ में पड़ेगी या तेरी भयानक तलवार ही। रे शठ! सुन, यही मेरा सच्चा प्रण है॥2॥

सीताजी कहती हैं- हे चंद्रहास (तलवार)! श्री रघुनाथजी के विरह की अग्नि से उत्पन्न मेरी बड़ी भारी जलन को तू हर ले, हे तलवार! तू शीतल, तीव्र और श्रेष्ठ धारा बहाती है (अर्थात्‌ तेरी धारा ठंडी और तेज है), तू मेरे दुःख के बोझ को हर ले॥3॥

सीताजी के ये वचन सुनते ही वह मारने दौड़ा। तब मय दानव की पुत्री मन्दोदरी ने नीति कहकर उसे समझाया। तब रावण ने सब दासियों को बुलाकर कहा कि जाकर सीता को बहुत प्रकार से भय दिखलाओ॥4॥

यदि महीने भर में यह कहा न माने तो मैं इसे तलवार निकालकर मार डालूँगा॥5॥

(यों कहकर) रावण घर चला गया। यहाँ राक्षसियों के समूह बहुत से बुरे रूप धरकर सीताजी को भय दिखलाने लगे॥10॥
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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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