श्री रामचरितमानस: बालकाण्ड: गुरु वंदना (Shri Ramcharitmanas: Balkand: Guru Vandana)


बंदउ गुरु पद पदुम परागा ।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥अमिय मूरिमय चूरन चारू ।
समन सकल भव रुज परिवारू ॥

सुकृति संभु तन बिमल बिभूती ।
मंजुल मंगल मोद प्रसूती ॥

जन मन मंजु मुकुर मल हरनी ।
किएँ तिलक गुन गन बस करनी ॥

श्रीगुर पद नख मनि गन जोती ।
सुमिरत दिब्य द्रृष्टि हियँ होती ॥

दलन मोह तम सो सप्रकासू ।
बड़े भाग उर आवइ जासू ॥

उघरहिं बिमल बिलोचन ही के ।
मिटहिं दोष दुख भव रजनी के ॥

सूझहिं राम चरित मनि मानिक ।
गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ॥

दोहा:
जथा सुअंजन अंजि दृग
साधक सिद्ध सुजान ।
कौतुक देखत सैल बन
भूतल भूरि निधान ॥
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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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