पुष्कर मेला जो की पुष्कर स्नान नाम से भी जाना जाता है देवउठनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है, जिसके बहुत धार्मिक महत्व है। कहा जाता है कि इसके बिना चारधाम यात्रा पूरा अधूरा है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इन पांच दिनों को भीष्म पंचक के नाम से भी जाना जाता है। पुष्कर मेला दुनिया के सबसे बड़े पशु मेलों में से भी एक है।
पुष्कर मेले के पीछे की पौराणिक कथा
ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने कार्तिक माह की एकादशी से पूर्णिमा तक 5 दिनों तक पुष्कर में यज्ञ किया था। इस काल में 33 करोड़ देव, देवियाँ भी पृथ्वी पर उपस्थित थे। इसी कारण से कार्तिक मास की एकादशी से पूर्णिमा तक 5 दिनों का पुष्कर में विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि इस महीने में सभी देवता पुष्कर में निवास करते हैं। इन्हीं मान्यताओं के चलते पुष्कर मेले का आयोजन किया जाता है। पुराने समय में संसाधनों की कमी के कारण श्रद्धालु अपने साथ जानवर भी लाते थे। धीरे-धीरे इसे पशु मेले के रूप में जाना जाने लगा।”
कब पुष्कर मेला आयोजित किता जाता है
मेला पांच से आठ दिनों तक चलता है और कार्तिक के पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है, जिसे कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। पुष्कर मेला आमतौर पर कार्तिक माह की एकादशी से पूर्णिमा तक चलता है। कार्तिक पूर्णिमा के आसपास पुष्कर में इसका विशेष महत्व है जो आम तौर पर नवंबर के दौरान होता है। यह त्यौहार आमतौर पर लगभग एक सप्ताह तक चलता है, इस शानदार कार्यक्रम को देखने के लिए दूर-दूर से भीड़ आकर्षित होती है।
संबंधित अन्य नाम | पुष्कर स्नान, पशु मेला |
शुरुआत तिथि | कार्तिक शुक्ल एकादशी |
उत्सव विधि | मेला,पुष्कर स्नान |
Updated: Sep 27, 2024 15:55 PM