💐ललिता जयंती - Lalita Jayanti
Lalita Jayanti Date: Wednesday, 12 February 2025
माता ललिता को समर्पित यह ललिता जयंती हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस दिन पूरे विधि-विधान से मां ललिता की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार माता ललिता को दस महाविद्याओं में तीसरी महाविद्या माना जाता है। ललिता जयंती पूरे विधि-विधान से किया जाए तो माता ललिता प्रसन्न होती हैं और जातक को जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
ललिता जयंती क्यूँ पालन किया जाता है?
इस दिन माता ललिता की पूजा करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। माता ललिता की पूर्ण आस्था के साथ पूजा करने से व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। इसलिए ललिता जयंती पर माता ललिता की बड़ी भक्ति से पूजा होती है।
ललिता जयंती का महत्व:
कहा जाता है कि माता ललिता की पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां ललिता को राजेश्वरी, षोडशी, त्रिपुर सुंदरी आदि नामों से भी जाना जाता है।
माघ शुक्ल पूर्णिमा तिथि को प्रायः उत्तर भारत में रविदास जयंती तथा दक्षिण भारत में ललिता जयंती एवं मासी मागम त्यौहार मनाए जाते हैं।
शुरुआत तिथि | माघ शुक्ला पूर्णिमा |
कारण | माता ललिता का अवतरण दिवस । |
उत्सव विधि | व्रत, पूजा, व्रत कथा, भजन-कीर्तन । |
This Jayanti is celebrated every year on the full moon day of Shukla Paksha of Magha month. This day is dedicated to Mata Lalita. Maa Lalita is also known by the names of Rajeshwari, Shodashi, Tripura Sundari etc.
ललिता जयंती कब है? | Lalita Jayanti Kab Hai?
ललिता जयंती 2024 : शनिवार, 24 फरवरी 2024
माघ पूर्णिमा तिथि : 23 फरवरी 2024 3:33pm - 24 फरवरी 2024 5:59pm
ललिता जयंती की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार देवी पुराण में माता ललिता का वर्णन मिलता है। एक बार नैमिषारण्य में यज्ञ किया जा रहा था। इस दौरान दक्ष प्रजापति भी वहां आ गए और सभी देवता उनका स्वागत करने के लिए खड़े हो गए। लेकिन उनके आने के बाद भी भगवान शंकर नहीं उठे। दक्ष प्रजापति को यह अपमानजनक लगा। ऐसे में इस अपमान का बदला लेने के लिए दक्ष प्रजापति ने शिव को अपने यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया।
जब माता सती को इस बात का पता चला तो वह शंकर की आज्ञा लिए बिना ही अपने पिता दक्ष प्रजापति के घर पहुंच गईं। वहाँ उन्होंने अपने पिता के मुख से शंकर जी की निंदा सुनी। उन्होंने बहुत अपमानित महसूस किया और उसी अग्निकुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। जब शिव को इस बात का पता चला तो वे बहुत व्याकुल हुए। उन्होंने माता सती के शव को अपने कंधे पर उठा लिया और उन्मत्त भाव से इधर-उधर घूमने लगे।
दुनिया की सारी व्यवस्था चरमरा गई। ऐसे में मजबूर होकर शिव ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। उसके अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वह उन्हीं स्थानों पर उन्हीं आकृतियों में बैठी रही। यह उनके शक्तिपीठ के स्थान के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
माता सती का हृदय नैमिषारण्य पर गिरा। नैमिष एक लिंगधारिणी शक्तिपीठ स्थल है। यहां भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा की जाती है। इसके साथ ही यहां ललिता देवी की भी पूजा की जाती है। भगवान शंकर को हृदय में धारण करने के बाद सती नैमिष में लिंगधारिणी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। उन्हें ललिता देवी के नाम से भी जाना जाता है।
संबंधित जानकारियाँ
शुरुआत तिथि
माघ शुक्ला पूर्णिमा
समाप्ति तिथि
माघ शुक्ला पूर्णिमा
कारण
माता ललिता का अवतरण दिवस ।
उत्सव विधि
व्रत, पूजा, व्रत कथा, भजन-कीर्तन ।
पिछले त्यौहार
24 February 2024, 5 February 2023, 16 February 2022, 27 February 2021
फोटो प्रदर्शनी
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Updated: Sep 27, 2024 16:57 PM
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