हरतालिका तीज पर कुंआरी कन्याएँ अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करने हेतु माँ गौरी व भगवान शंकर की पूजा एवं व्रत करती हैं। यह त्यौहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आता है, तथा हरतालिका व्रत हस्त नक्षत्र में किया जाता है। यह आमतौर पर अगस्त-सितम्बर के महीने में ही आती है। नई विधा के अनुसार कुछ सौभाग्यवती स्त्रियां भी हरतालिका व्रत का पालन करतीं हैं।
हरतालिका तीज का शाब्दिक अर्थ क्रमशः हरत अर्थात अपहरण, आलिका का अर्थ स्त्रीमित्र (सहेली) तथा तीज-तृतीया तिथि से लिया गया है। हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, देवी पार्वतीजी की उनकी सहेलियां अपहरण कर उन्हें घने जंगल में ले गई थीं। जिससे कि पार्वतीजी के पिता उनका विवाह, उनकी ही इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें।
हरतालिका तीज पर माता पार्वती(माता शैलपुत्री) और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू, रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा बनाते हैं। इसमें भगवान शिव को धोती-अंगोछा चढ़ाया जाता है। तथा सुहाग सामग्री अपनी सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान दे दिए जाते हैंखोलें। इस प्रकार पूजन के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण करने का विधान है, आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिन्दूर चढ़ाएं व हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।
केवड़ा तीज
गुजरात राज्य में महिलाएं हरतालिका तीज त्योहार को केवड़ा तीज के नाम से मनाती हैं। इस व्रत में महिलाएं भगवन को केवड़े का पुष्प अर्पित करतीं हैं।
गौरी हब्बा
हरतालिका तीज त्यौहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु में को गौरी हब्बा नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार माता गौरी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में पूजा जाता है। गौरी हब्बा के दिन महिलाएं स्वर्ण गौरी व्रत रखती हैं व माता गौरी से सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं।
संबंधित अन्य नाम | गौरी तृतीया, गौरी हब्बा, स्वर्ण गौरी व्रत, केवड़ा तीज |
शुरुआत तिथि | भाद्रपद शुक्ला तृतीया |
कारण | देवी पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में पाती हैं। |
उत्सव विधि | व्रत, पूजा, भजन कीर्तन। |
Updated: Sep 27, 2024 15:47 PM