यदि नाथ का नाम दयानिधि है,
तो दया भी करेंगे कभी ना कभी,
दुखहारी हरी, दुखिया जन के,
दुख क्लेश हरेगें कभी ना कभी ॥
जिस अंग की शोभा सुहावनी है,
जिस श्यामल रंग में मोहनी है,
उस रूप सुधा से स्नेहियों के,
दृग प्याले भरेगें कभी ना कभी ॥
जहां गिद्ध निषाद का आदर है,
जहाँ व्याध अजामिल का घर है,
वही भेष बनाके उसी घर में,
हम जा ठहरेगें कभी ना कभी ॥
करुणानिधि नाम सुनाया जिन्हें,
कर्णामृत पान कराया जिन्हें,
सरकार अदालत में ये गवाह,
सभी गुजरेगें कभी ना कभी ॥
हम द्वार में आपके आके पड़े,
मुद्दत से इसी है जिद पर अड़े,
भव-सिंधु तरे जो बड़े से बड़े,
तो ये ‘बिन्दु’ तरेगें कभी ना कभी ॥
यदि नाथ का नाम दयानिधि है,
तो दया भी करेंगे कभी ना कभी,
दुखहारी हरी, दुखिया जन के,
दुख क्लेश हरेगें कभी ना कभी ॥