विनती सुन लेना मेरी कब आओगे हनुमान: भजन (Vinti Sun Lena Meri Kab Aaoge Hanuman)


विनती सुन लेना मेरी,
जोऊं बाटड़ली तेरी,
कब आओगे हनुमान,
धरूँ मैं तुम्हारा ध्यान ॥जबसे सुनी है तेरे,
आने की बातें,
दिन ना कटे है मेरा,
ना कटती रातें,
किसको सुनाऊँ अपनी,
दुःख भरी बातें,
बिन बोले सब कुछ जाने,
मन की हालत पहचाने,
तुम ही रखोगे मेरी आन,
धरूँ मैं तुम्हारा ध्यान ॥

अष्ट प्रहर तेरी,
पंथ निहारूं,
करता गुणगान तेरा,
तुझको पुकारूँ,
तेरे चरणों में बाला,
सब कुछ उबारुं,
मैं भी चरणों का चेरा,
बालाजी दास तेरा,
भक्तो का राखो तुम मान,
धरूँ मैं तुम्हारा ध्यान ॥

दर्शन को मनवा तरसे,
नैनो से नीर बरसे,
जाने कब दर्शन करके,
सूखा मन आँगन हरषे,
अब तो आ जाओ बाला,
काहे दुविधा में डाला,
कर दो कृपा भगवान,
धरूँ मैं तुम्हारा ध्यान ॥

विनती सुन लेना मेरी,
जोऊं बाटड़ली तेरी,
कब आओगे हनुमान,
धरूँ मैं तुम्हारा ध्यान ॥
Vinti Sun Lena Meri Kab Aaoge Hanuman - Read in English
Vinati Sun Lena Meri, Juon Batadali Teri, Kab Aaoge Hanuman, Dharun Main Tumhara Dhyaan ॥
Bhajan Hanuman BhajanBalaji BhajanBajrangbali BhajanHanuman Janmotsav BhajanHanuman Jyanti BhajanMangalwar BhajanTuesday BhajanHanuman Path BhajanSundar Kand Path Bhajan
अगर आपको यह भजन पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!


* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

वेणुगीत

बह्रापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं, बिभ्राद्वासः कनककपिशं वैजयंतीं च मंगलम्। रंध्रणवेनोरधरसुधायपुरयन्गोपवृन्दैर्वृ , न्दारण्यं स्वपद्रमणं प्रविषद्गीतकीर्तिः ॥

बर्फानी बाबा तेरी जय जैकार - भजन

बर्फानी बाबा तेरी जय जैकार, चाहे दिन हो चाहे रात हो, इस मन में बस तेरी बात हो, यही गाऊँ बार बार,बर्फानी बाबा तेरी जय जैकार

गोपी गीत - जयति तेऽधिकं जन्मना

जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । दयित दृश्यतां दिक्षु तावका स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥

प्रणय गीत

मैवं विभोऽर्हति भवान्गदितुं नृशंसं, सन्त्यज्य सर्वविषयांस्तव पादमूलम् । भक्ता भजस्व दुरवग्रह मा त्यजास्मान्दे, वो यथादिपुरुषो भजते मुमुक्षून् ॥

युगल गीत

वामबाहुकृतवामकपोलो, वल्गितभ्रुरधरार्पितवेणुम् । कोमलाङ्गुलिभिराश्रितमार्ग , गोप्य ईरयति यत्र मुकुन्दः ॥ २ ॥