कान्हा रोज रोज तुमको सजाता रहूँ और मनाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं ।
दुग्ध-दधि-जल-शहद से नहलाया करूँ,
रेशमी वस्त्र सुन्दर पहनाया करूँ ।
तेरे नयनों में कजरा लगाता रहूँ, गीत गाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं ॥ कान्हा....
कुंकुम-केसर के चन्दन लगाऊँ तुझे,
पुष्पमाला मैं सुन्दर पहनाऊँ तुझे ।
पग में पैजनियाँ सुन्दर पहनाता रहूँ और नचाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं ॥ कान्हा....
प्यार से सुन्दर व्यंजन खिलाऊँ तुझे,
दुग्ध में मिश्री-केसर पिलाऊँ तुझे ।
तेरे सेवा में तन-मन लगाता रहूँ, मुस्कुराता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं || कान्हा....
साथ में गाके लोरी सुलाऊँ तुझे,
प्यारा-सा गीत गा के जगाऊँ तुझे ।
कान्त सपनों में भी मैं सजाता रहूँ और मनाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं ॥ कान्हा.....