जय जय जगन्नाथ जग के नाथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
जिनका न कोई तुम उनके साथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
पुरी की पावन नगरी में
फलदाई तेरा धाम है
वहां के कण-कण में बसा
प्रभु तुम्हारा नाम है
करुणा की करते नित बरसात
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
जिनका न कोई तुम उनके साथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
फाग मंडप में है प्रभु
तेरा सदा निवास है
जहां तुम्हारे भक्तों की
पूर्ण होती आस है
बनते सभी की बिगड़ी बात
हम तुम्हें भेजते हैं दिन रात
जिनका न कोई तुम उनके साथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
प्यारा तुम्हारा जगमोहन
नित्यशाला का नाम है।
भक्तों की मनमोहना
जहां तुम्हारा काम है
पूछते सबके दिल की बात
हम तुम्हें भेजते हैं दिन-रात
जिनका न कोई तुम उनके साथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
मुख्य साला में भक्तों की
सदा ही रहती भीड़ है
तुम जब जगाते जागते
सोई तकदीर है
उनके संवरते हैं हालात हम
तुम्हें भेजते हैं दिन रात
जिनका न कोई तुम उनके साथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
दर्शन होते जहां तेरे
उसको विमान कहते हैं
अद्भुत तेरी करुणा के
वहां पर झरने बहते है
सुखों की मिलती है जहां सौगात
हम तुम्हें भेजते हैं दिन रात
जिनका न कोई तुम उनके साथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
दया की सिंधु तुम ही तो
जगत पिता जगदीश हो
दुख से पीड़ित प्राणी का
सुख का देते आशीष हो
थम के दुखियों के तुम हाथ
हम तुम्हें बजाते हैं दिन रात
जिनका न कोई तुम उनके साथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
एक तरफ है सुभद्रा जी
दुसरी तरफ बलराम है
इन दोनों के बीच खड़े
देवकी के सुत घनश्याम है
सृष्टि के स्वामी तुम हो नाथ
हम तुम्हें भेजते हैं दिन रात
जिनका न कोई तुम उनके साथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
जग के सताए जीव को
सिर्फ तेरा ही आसरा
तुमसा दयालु विश्व में
और कोई न दूसरा
हमें भी दिखाओ कोई करामात
हम तुम्हें भेजते हैं दिन रात
जिनका न कोई तुम उनके साथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
जय जय जगन्नाथ जग के नाथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात
जिनका न कोई तुम उनके साथ
हम तुम्हें भजते हैं दिन रात