बजरंगबली की शान बड़ी - भजन (Bajrangbali Ki Shan Badi)


बजरंगबली की शान बड़ी
अति सुंदर है हनुमानगढ़ी ।
श्री राम गरीब नवाज है
हनुमत कलयुग के राजा है
रमणीक प्रतीक प्रधान मढ़ी
अति सुंदर है हनुमानगढ़ी ।
बजरंगबली की शान बड़ी
अति सुंदर है हनुमानगढ़ी ।
यहां संत हजारों वास किए
श्री राम नाम की आस लिए
श्री राम नाम की आस लिए
प्रतिमा सिंदूरी रतन जड़ी
अति सुंदर है हनुमानगढ़ी ।
बजरंगबली की शान बड़ी
अति सुंदर है हनुमानगढ़ी ।


नित भजन होत साधु सेवा
मनवांचित फल मुक्ती मेवा
मनवांचित फल मुक्ती मेवा
लगी राम चरित की अमृत झड़ी
अति सुंदर है हनुमानगढ़ी ।
बजरंगबली की शान बड़ी
अति सुंदर है हनुमानगढ़ी ।


यदि अब भी कोई जूझे रण में
तो लंका सी फूंक देंगे क्षण में
तो लंका सी फूंक देंगे क्षण में
पहरे पर मूर्ति महान खड़ी
अति सुंदर है हनुमानगढ़ी ।
बजरंगबली की शान बड़ी
अति सुंदर है हनुमानगढ़ी ।
Bhajan Hanuman BhajanBalaji BhajanBajrangbali BhajanHanuman Janmotsav BhajanHanuman Jyanti BhajanMangalwar BhajanTuesday BhajanHanuman Path BhajanSundar Kand Path BhajanHanuman Gadi BhajanAyodhya Mahima BhajanChandra Bhushan Pathak Bhajan

अन्य प्रसिद्ध बजरंगबली की शान बड़ी - भजन वीडियो

Sarita Sargam

अगर आपको यह भजन पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!


* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

वेणुगीत

बह्रापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं, बिभ्राद्वासः कनककपिशं वैजयंतीं च मंगलम्। रंध्रणवेनोरधरसुधायपुरयन्गोपवृन्दैर्वृ , न्दारण्यं स्वपद्रमणं प्रविषद्गीतकीर्तिः ॥

बर्फानी बाबा तेरी जय जैकार - भजन

बर्फानी बाबा तेरी जय जैकार, चाहे दिन हो चाहे रात हो, इस मन में बस तेरी बात हो, यही गाऊँ बार बार,बर्फानी बाबा तेरी जय जैकार

गोपी गीत - जयति तेऽधिकं जन्मना

जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । दयित दृश्यतां दिक्षु तावका स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥

प्रणय गीत

मैवं विभोऽर्हति भवान्गदितुं नृशंसं, सन्त्यज्य सर्वविषयांस्तव पादमूलम् । भक्ता भजस्व दुरवग्रह मा त्यजास्मान्दे, वो यथादिपुरुषो भजते मुमुक्षून् ॥

युगल गीत

वामबाहुकृतवामकपोलो, वल्गितभ्रुरधरार्पितवेणुम् । कोमलाङ्गुलिभिराश्रितमार्ग , गोप्य ईरयति यत्र मुकुन्दः ॥ २ ॥