इक दिन वो भोले भंडारी बन करके ब्रज की नारी, ब्रज/वृंदावन में आ गए।
शीश गंग अर्धंग पार्वती सदा विराजत कैलासी। नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुर सुखरासी॥
शिव शंकर को जिसने पूजा उसका ही उद्धार हुआ। अंत काल को भवसागर में उसका बेडा पार हुआ॥
हे शम्भू बाबा मेरे भोले नाथ, तीनो लोक में तू ही तू। श्रद्धा सुमन मेरा, मन बेलपत्री...
ॐ शंकर शिव भोले उमापति महादेव, पालनहार परमेश्वर, विश्वरूप महादेव, महादेव, महादेव...