श्रीनिवास जगन्नाथ श्रीहरे भक्तवत्सल ।
लक्ष्मीपते नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात् ॥१॥
राधारमण गोविंद भक्तकामप्रपूरक ।
नारायण नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात् ॥२॥
दामोदर महोदार सर्वापत्तीनिवारण ।
ऋषिकेश नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात् ॥३॥
गरुडध्वज वैकुंठनिवासिन्केशवाच्युत ।
जनार्दन नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात् ॥४॥
शंखचक्रगदापद्मधर श्रीवत्सलांच्छन ।
मेघश्याम नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात् ॥५॥
त्वं माता त्वं पिता बंधु: सद्गुरूस्त्वं दयानिधी: ।
त्वत्तोs न्यो न परो देवस्त्राही मां भवसागरात् ॥६॥
न जाने दानधर्मादि योगं यागं तपो जपम ।
त्वं केवलं कुरु दयां त्राहि मां भवसागरात् ॥७॥
न मत्समो यद्यपि पापकर्ता न त्वत्समोsथापि हि पापहर्ता ।
विज्ञापितं त्वेतद्शेषसाक्षीन मामुध्दरार्तं पतितं तवाग्रे ॥८॥
मङ्गलम् भगवान विष्णुः |
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