रंगनाथ स्वामी मंदिर, कर्नाटक के श्रीरंगम में स्थित हिन्दुओं का एक पवित्र धार्मिक स्थल है। यह मंदिर हिन्दू देवता भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां भगवान विष्णु की पूजा श्री रंगनाथस्वामी के रूप में की जाती है। कावेरी नदी के तट पर स्थित यह रंगनाथ स्वामी मंदिर को भूलोक का वैकुंठ या भगवान विष्णुजी का धाम माना जाता है।
रंगनाथ स्वामी मंदिर के वास्तु कला
मंदिर के प्रवेश द्वार पर विजयनगर वास्तुकला के अनुरूप है। मुखमंडप की छत को लघु सजावटी मीनारों की एक
\"माला\" से सजाया गया है, जिसके निचे में भगवान विष्णु की छवियां हैं। गर्भगृह में, विष्णु की छवि नाग के सात फनों द्वारा बनाई गई छतरी के नीचे, नाग आदिशेष के कुंडल पर, उनकी पत्नी लक्ष्मी के पैरों पर टिकी हुई है। भगवान विष्णु के अगल मैं अन्य देवतायें श्रीदेवी, भूदेवी और ब्रम्हा जी भी हैं । मंदिर के परिसर में भगवान नरसिंह, गोपालकृष्ण, श्रीनिवास, हनुमान, गरुड़ और अलवर संतों को समर्पित अन्य छोटे मंदिर भी हैं। रंगनाथ स्वामी मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में संरक्षित किया गया है।
पुरातन प्प्रचलित कथा
हिन्दू मान्यता के अनुसार श्री रंगनाथन भगवान विष्णु का ही अवतार हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार वैदिक काल में कावेरी नदी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम था। उस समय अन्य क्षेत्रों में जल की काफी कमी थी। एक दिन जल की तलाश में कुछ ऋषि गौतम ऋषि के आश्रम जा पहुंचे।
अपने यथाशक्ति अनुसार गौतम ऋषि ने उनका आदर सत्कार कर उन्हें भोजन कराया। परंतु ऋषियों को उनसे ईर्ष्या होने लगी। उर्वर भूमि की लालच में ऋषियों ने मिलकर छल द्वारा गौतम ऋषि पर गौ हत्या का आरोप लगा दिया तथा उनकी सम्पूर्ण भूमि हथिया ली।
इसके बाद गौतम ऋषि ने श्रीरंगम जाकर श्री रंगनाथ की आराधना की और उनकी सेवा की। गौतम ऋषि के सेवा से प्रसन्न होकर श्री रंगनाथ ने उन्हें दर्शन दिया और पूरा क्षेत्र उनके नाम कर दिया। माना जाता है कि गौतम ऋषि के आग्रह पर स्वयं ब्रह्मा जी ने इस मंदिर का निर्माण किया था।
रंगनाथ स्वामी मंदिर के प्रमुख त्यौहार
शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन रंगनाथ मंदिर में हर साल रंग जयंती का आयोजन किया जाता है। रंगनाथ स्वामी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाने वाला यह उत्सव पूरे आठ दिन तक चलता है। माना जाता है कि इस पवित्र स्थान पर बहने वाली कावेरी नदी में कृष्ण दशमी के दिन स्नान करने से व्यक्ति को अष्ट-तीर्थ करने के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है।
आदि शंकराचार्य और रामानुजाचार्य ने अपने समय में इस गौरवशाली मंदिर का दौरा किया था और भजन किया था।
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