गंगोत्री, उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित है। गंगोत्री प्रसिद्ध पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल है और इसका देवी गंगा से गहरा संबंध है। गंगा नदी गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है और भागीरथी के नाम से जानी जाती है।
हिंदू धर्म में, हिमालय पर्वत से निकलने वाली गंगा नदी को \"गंगा मैया\" और \"माँ गंगा\" कहा जाता है। गंगा नदी को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र और पूजनीय माना जाता है। इस गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री को माना जाता है। उत्तराखंड की छोटा चारधाम यात्राओं में से एक गंगोत्री में स्थित गंगोत्री मंदिर (माता गंगा को समर्पित मंदिर) के दर्शन के लिए हर साल लाखों भक्त गंगोत्री जाते हैं।
गंगा नदी का उत्पत्ति मूल रूप से गौमुख है, जो हिमालय के सबसे बड़े गंगोत्री हिमनद में गंगोत्री से 19 किमी की दूरी पर स्थित है। भक्त गंगोत्री से 19 किमी पैदल चलकर गौमुख पहुंच सकते हैं।
गंगोत्री की वास्तुकला:
गंगोत्री मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी की शुरुआत में किया गया था। मुख्य मंदिर 20 फीट ऊंचे चमकदार सफेद ग्रेनाइट पत्थरों से बना है। गंगोत्री मंदिर की संरचना दूर से ही भक्तों को आकर्षित करने में सक्षम है। मंदिर के पास बहने वाली भागीरथी नदी में एक शिवलिंग भी है जो ज्यादातर समय जलमग्न रहता है।
गंगोत्री के पीछे की पौराणिक कथा:
एक पुरानी कथा के अनुसार भगवान शिव ने राजा भगीरथ को उनकी तपस्या के कारण गंगा नदी को धरती पर आने का बरदान दिया था।
कहा जाता है कि जिस स्थान पर गंगोत्री में जलमग्न शिवलिंग है, वहां भगवान शिव ने माता गंगा को अपने बालों में धारण किया था। महाभारत से जुड़ी पौराणिक घटनाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद पांडवों ने इस पवित्र स्थान पर आकर युद्ध के दौरान मारे गए अपने परिवारों की मुक्ति के लिए एक महान यज्ञ किया था।
मंदिर खुलने और बंद होने का समय:
केदारनाथ मंदिर और बद्रीनाथ मंदिर की तरह, यह गंगोत्री मंदिर भी साल में केवल छह महीने भक्तों के लिए खुला रहता है। भक्त हर साल अप्रैल या मई के महीने से अक्टूबर से नवंबर के महीने तक गंगोत्री मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, अक्षय तृतीया के दौरान भक्तों के लिए गंगोत्री मंदिर के कपाट खोले जाते हैं और दिवाली के बाद आने वाली भैया दूज के बाद भक्तों के लिए गंगोत्री मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
मंदिर के कपाट बंद होने के बाद माता गंगा की डोली को हरसिल के पास स्थित मुखबा गांव ले जाया जाता है। जहां अगले छह माह तक गंगा मैया की पूजा की जाती है। गंगोत्री की सुबह और शाम की आरती पूरी तरह से भक्तिमय होती है।
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